केमिस्ट्री
राजस्थान बोर्ड के बारहवीं कक्षा के परिणाम घोषित हो चुके हैं। अंजू सुबह लेट उठती है, उसके पापा अखबार छान चुके थे, पर उस लड़की का रोल नम्बर दिखाई नहीं दिया। अब...?? जगान्नाथ बाबू सोच रहे थे नाहक ही छोरी को साइंस सब्जेक्ट दिलवा दिए, इससे तो बढ़िया मेरी ही तरह आर्ट्स पढ़ती और किसी सरकारी नौकरी में फिट हो जाती। मीना देवी ने ३-४ बार आवाज़ दी पर अंजू हिली नहीं थी। अबके मीना देवी बोलीं - "अंजू, छोरी तू उठे है के मैं आऊं गरम पानी लेर ....थारा पापा कित्ता परेशान हैं देख तो सही।" यह गरम पानी अक्सर अंजू को जगाने के काम आता, सिर्फ शब्दों से ही काम हो जाता, पानी गरम करने की ज़रूरत नहीं पड़ती थी।
अंजू बिस्तर से निकली और आँखें मसलती बहार आई "माँ क्या बात है, क्या हुआ"
"अरे छोरी इत्ती रात पढ़ती थी, अब बता फ़ैल किकर हो गी ?"
"पापा अखबार इधर देना, फ़ैल होने का कोई चानस नहीं"
कुछ मिनट अंजू ने अखबार देखा और होले से मुस्कुराती हुई अखबार में एक जगह ऊँगली टिकाये पापा से बोली "देखो पापा"। जगन्नाथ बाबू ने पहले चश्मे के ऊपर से अंजू को देखा और फिर चश्मे में से झांककर अखबार देखने लगे। एकाएक उनके होठों पर मुस्कान तैर गयी।
"अरे बैरबानी*, देख अंजू मईरिट में आई है, पूरे प्रदेश में नौवाँ नम्बर आया है" जगन्नाथ बाबू के आँखों में हल्की नमी आ गयी थी। अंजू के सर पर हाथ फिराया और मीना देवी से बोले - "बुशट पकड़ा, अबार सारे मोहल्ले में जलेबी बांटता हूँ, माहरी छोरी आखा प्रदेश में नम्बर निकाला है, ऐसे कैसे ? "
जगन्नाथ बाबू का तकिया कलाम था 'ऐसे कैसे', जब भी उनको गुस्सा आता या फिर खुश होते तो ज़रूर कहते - 'ऐसे कैसे'
अंजू मेरिट में स्थान पा चुकी थी और इसका श्रेय माता पिता के आशीर्वाद के अलावा गुणी गुरुजनों को भी जाता है। इन में सबसे गुणी आकाश बाबू थे। अंजू के स्कूल के अध्यापक नहीं थे आकाश जी, वह तो प्राइवेट ट्यूशन क्लास चलते थे. आकाश वैसे तो सिर्फ बी.एससी.पास थे पर पूरे कसबे में उनसे अच्छी केमिस्ट्री कोई पढ़ा नहीं सकता था। आकाश वैसे तो सब विद्यार्थियों पर समान मेहनत करता था पर अंजू के लिए उसने जी तोड़ मेहनत की थी, अपने सब्जेक्ट के अलावा फिज़िक्स और बायोलोजी में भी काफी मदद की थी.
सब लोग खुश थे. जगन्नाथ बाबू अंजू को डॉक्टर बनाना चाहते थे. मीना देवी के लिए इससे बेहतर कुछ हो नहीं सकता था. सरकारी स्कूल के हेडमास्टर साब भी यही चाहते थे, भई उनके स्कूल का नाम रोशन हो, इसमें क्या वह खुश नहीं होंगे... पहले विद्यार्थी बोर्ड मेरिट में स्थान पाए और फिर प्रतियोगी परीक्षा में, इससे अच्छा क्या हो सकता है भला. आकाश बाबू भी यही चाहते थे की अंजू पीएमटी की तैयारी करे.
अंजू लगातार दो बार पीएमटी परीक्षा दे चुकी थी पर उसका चयन नहीं हो पाया था. सब लोग अचरज में थे, लेकिन आकाश बाबू नहीं. खैर अंजू साथ ही बी एस सी भी कर रही थी और काफी अच्छे नम्बरों से पास होती थी, दोनों साल ही केमिस्ट्री में उसने डिसटिंक्शन हासिल किया था.
अंजू पापा से एक बार बोली - "पापा इस बार मैं पीएमटी नहीं दूँगी, आप देखो मेरे सेकण्ड इयर में कितने अच्छे नम्बर आये हैं, मुझे इस साल अच्छे से मेहनत करके गोल्ड मेडल लेना है "
जगन्नाथ बाबू क्या कहते, उनको पता था बिटिया है मेहनती, जो सोच रही होगी ठीक ही होगा, बोले - "ठीक है अंजू, थारे जचे जीको कर. म्हे लोग तो जादा समझो कोणी". माँ सब सुन रही थी. रात को सोने से पहले जगन्नाथ बाबू से बोली -"सुनो, बेटी बड़ी होगी, थे कईं उन्नी शादी ब्याह री फिकर कोणी करो हो"
"अरे बैरबानी, थू भी, अरे छोरी पढ़े है तो उने पढन दे"
"थे तो म्हारी बात इज कोनी सुण रह्या "
जगन्नाथ बाबू "अरे अठी उठी कह दी है, कोई अचो लडको होई तो बात चलावा ला, अब तू शान्ति कर सो जा"
अंजू इधर थर्ड इयर की तैयारी में लीन थी और उधर आकाश बाबू अपनी एम एस सी फ़ाइनल इयर के पेपर के लिए. दरअसल आकाश बाबू को ऐसा लगा अगर वह केमिस्ट्री में और पारंगत होना चाहते हैं तो एम एस सी करना ठीक रहेगा.
अंजू गोल्ड मेडल ले आई, फिर से एक बार जगन्नाथ बाबू पूरे मोहल्ले में मिठाई बाँट रहे थे. आकाश बाबू भी बहुत खुश थे. अंजू के चेहरे पर खुशी नहीं थी, कुछ चिंताएं ज़रूर झलक रही थी. माँ ने पूछा - "अरे छोरी तू खुश कोणी कईं, अरे इत्तो तो कोई आज तक थारे दादा री तरफ और न ही कोई नाना री तरफ पढिया"
"माँ, आप कभी कभी पापा से मेरी शादी की बात करते हो न, मैं तैयार हूँ, पर मुझे वोह... "
"अरे गेली म्हणे ठा है, छोरी ने शर्म आवे "
"माँ वोह बात नहीं है, वोह में आकाश बाबू से ..."
माँ आकाश का नाम सुनते ही सारा माजरा समझ गयी, आकाश बाबू उनके घर आते थे पर दोनों ने कभी ऐसा प्रतीत नहीं होने दिया की वह आपस में प्रेम करते हों या फिर ... यही सोचते हुए जगन्नाथ बाबू से मीना देवी ने बात की. पहले तो जगन्नाथ बाबू तैयार नहीं हुए पर लड़का उनकी जाति का था और पढ़ा लिखा भी सो उन्होंने बात चलाने में कोई हर्ज नहीं समझा. जगन्नाथ बाबू को अपनी बेटी पर पूरा विश्वास था और मीना देवी की बेटी की होशियारी की मिसाल उनके ससुराल और पीहर में बराबर दी जाती रही. जगन्नाथ बाबू ने काफी विचार विमर्श किया अपने बड़े भई साहब चुन्निलालजी से, अपने ससुर छगनलालजी से और अपनी पत्नी मीना देवी से, आखिर में जगन्नाथ बाबू ने बात चलाने की सोची.
आकाश की उम्र भी कोई ज़्यादा नहीं यही कोई २५-२६ बरस, अंजू से यही कोई चारेक साल बड़े. आकाश के पिताजी और वह दो प्राणी ही घर में थे, माता का देहांत ६ साल पहले हुआ था. बाकी रिश्तेदार गाँव में थे. जगन्नाथ बाबू को ठीक लगा और दो मुलाक़ात के बाद ही आकाश के पिताजी माणकलालजी और जगन्नाथ बाबू में बात तय हो गयी। शादी बड़ी धूमधाम से संपन्न हुई।
शादी के बाद अंजू ने बी एड में दाखिला ले लिया, बी एड करने के तुरंत बाद ही सरकारी रिक्तियां निकलीं और अंजू का चयन थर्ड ग्रेड टीचर के लिए हो गया। पोस्टिंग भी पास ही के एक गाँव में हुई थी। अंजू साथ ही एम एस सी केमिस्ट्री भी कर रही थी।
आज सात साल बाद अंजू आज अपने ही कस्बे में सरकारी स्कूल में कमिस्ट्री की व्याख्याता है और आकाश बाबू का अपना कोचिंग इंस्टिट्यूट है जिसमे लगभग ५०० विद्यार्थी विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए अध्यनरत हैं।
आकाश बाबू जब भी मिलते हैं तो कहते हैं - " अगर अंजू मेरे जीवन में न आती तो शायद मैं एक ट्यूशन वाला मास्टर ही रहता, उसकी प्रेरणा और संबल से ही मैं यहाँ हूँ।"
एक और बात जो शायद किसी को नहीं पता - अंजू ने पी एमटी में उतने ही प्रशन किये जितने ज़रूरी थे, मतलब उतने ही प्रशन ठीक करके आई जिससे उसका चयन न हो. असल में अगर वह सारे प्रशन ठीक कर आती तो उसका चयन हो जाता और ६ साल बाद जब वह डॉक्टर बनती तो उसके घरवाले उसकी शादी किसी डॉक्टर या इंजीनियर से करने की सोचते, आकाश बाबू का तो कहीं नम्बर ही नहीं आता।
अंजू और आकाश दोनों खुश हैं तथा दोनों बच्चों तथा माणकलालजी के साथ सुखमय जीवनयापन कर रहें हैं.
(कुछ शब्दार्थ:
बैरबानी- जो वाणी बैरी बोलते हों, बीवी को कुछ लोग बैर
बानी बोलते हैं, जगन्नाथ बाबू भी अपने एक दोस्त से यह शब्द सीखे थे।
अठी-उठी - इधर-उधर )
राजस्थानी शब्दों का अच्छा प्रयोग किया है आपने..
ReplyDeleteएक बात का ध्यान जरूर रखें...
पञ्च लाइन हमेशा कहानी के आखिर में हो तो कहानी प्रभावशाली हो जाती है...
अभ्यास बनाए रखिये ..शुभकामनाएँ.
ए शरारती लडके! ये ट्यूशन पढाने वाले मास्टरों से सचमुच डर लगता है,अपनी जगह दोनों सही,दोनों गलत.ये तो ठीक है आकाश ने जिस क्षत्र को चुना उसमे भी अपनी मेहनत से एक मुकाम हासिल किया,पर ...वोंही कर पाता तो..????
ReplyDeleteक्या फिर भी माता पिता को उस लडके से अंजू की शादी कर देना चाहिए थी?
नाराजगी प्यार,मोहोब्बत या प्रेम विवाह से नही बल्कि उसका प्रारम्भ ही माता पिता अपनों को धोखा दे कर की जाती है यही विश्वासघात दोनों परिवारों के 'पेरेंट्स' को हर्ट करती होगी ना?
चलो यहाँ तो कहानी 'सुखान्त' रही. लिखते रहो.मिलने का स्थान तो अब किसी से नही पूछना पड़ेगा.जिन्हें प्यार है आपसे वो तो आ ही जायेंगे.
हा हा हा
शेखावत जी ने 'पंच लाइन' का ज़िक्र किया.विस्तार में बतलायेंगे क्या वे?
ਮੈਕਯਾ ਖਤ੍ਰੀ ਸਾਬ.
ReplyDeleteਸਤ ਸ੍ਰੀ ਅਕਾਲ!
ਕੇਮਿਸ੍ਟ੍ਰੀ ਪੜ੍ਹੀ! ਵਧਿਯਾ ਲਗੀ!
ਤੁਹਾਡੀ ਲੇਖਣੀ ਇੱਦਾ ਹੀ ਚਲਤੀ ਰਹਵੇ, ਅੱਸੀ ਰਬ ਕੋਲ੍ਲੋੰ ਇਹੀ ਦੁਆ ਮੰਗ੍ਦੇੰ ਵਾਂ!
ਤੇ ਨਾਲ ਮਾ ਸਾ ਨੂ ਪੈਰੀ ਪਾਉਣਾ!
--------
ਹੁਣ ਅਸੀਂ ਟ੍ਵਿਟਰ ਚ ਵੀ!
https://twitter.com/professorashish
@चैन सिंह जी
ReplyDeleteशुक्रिया, मारवाड़ी भाषा ज्यादा अच्छी नहीं जानता हूँ, पर जितनी जानता हूँ वह ऊपर कहानी में है. :)
करत करत अभ्यास जड़मति होत सुजान.
असल में जो घटित हुआ और जैसा मैंने देखा उसे बस वैसे ही लिख देना चाहता थे.
आभार
मनोज खत्री
@ इंदु मैडम
ReplyDeleteआकाश और अंजू प्रेम करते थे, क्या आपको नहीं लगता प्रेम में सब वाजिब है..
यह कहानी से ज्यादा एक संस्मरण है.
प्यारे लोगों को सब प्यारे लगते हैं, आभार.
आप ब्लॉग पर आयीं और कहानी पर टिप्पणी दी.. धन्यवाद.
कृपा बनाये रखियेगा.
मनोज खत्री
@ आकाश (प्रोफेसर साब)
ReplyDeleteहुज़ूर आपकी टिप्पणी के लिए धन्यवाद, पर अगर इसका तर्जुमा हिंदी में कर देते तो समझ आ जाता !!
आभार
मनोज खत्री
आकाश नहीं अशीष! कोई बात नहीं!
ReplyDeleteप्रस्तुत है तर्जुमा नहीं, ट्रांसलिटरेशन:
मैकया खत्री साब,
सत श्री अकाल!
केमिस्ट्री पढ़ी. वधिया लगी.
तुहाडी लेखनी इद्दा दी चलदी रहवे, असी रब कोल्लों एही दुआ मंगदे हां.
ते नाल माँ सा नु पैरी पौना!
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हुन असी ट्विटर च वी:
https://twitter.com/professorashish
अशीष नहीं आशीष
ReplyDeleteदरअसल आकाश ही पूरी तरह छाया हुआ है... माफ़ी चाहता हूँ.
आपकी शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद.
फिर पधारियेगा.
आभार
मनोज खत्री
जितनी तारीफ करूँ , कम होगी !
ReplyDelete@ दिव्या जी
ReplyDeleteआप पहली बार ब्लॉग पर पधारीं हैं, आपका स्वागत hai ..
आपकी टिप्पणी के लिए धन्यवाद.
आते रहिएगा..
आभार
मनोज खत्री
कहानी को तीन चार बार पढ़ा. आपने बहुत बढ़िया लिखा है. आखिर में कहानी में किसी चमत्कार के जरिये प्रेम की गहराई खुल कर सामने आती है. बहुत बधाई.
ReplyDeletevery good. I really appreciate your interest and approach. being in business, u can spare time to write this. Keep it.
ReplyDelete@किशोरजी
ReplyDeleteधन्यवाद. आपने कहानी पढ़ी और टिप्पणी दी.
यहाँ मैं एक खुलासा करना चाहता हूँ. इस संस्मरण को मैं हमेशा से ही लिख देना चाहता था, पर कभी शीर्षक खोजता रहा तो कभी कहानी कैसे शुरू हो, इस बारे में सोचता रहा. बकौल खुशवंत सिंह its difficult to start, once you start you keep writing. कहानी की शुरुआत करने में थोडा कन्फुयुज़ था, किशोरजी ने इसमें मेरी मदद की और मैंने यह कहानी डेढ़ घंटे में लिख डाली.
किशोरजी को फिर से धन्यवाद.
मनोज खत्री
@ Dr Shrenik
ReplyDeleteThanks for sparing your valuable time.
The sole activity besides work, for me is blogging. Its like socialising for me.
Regards,
Manoj Khatri
ईमानदारी से ...सादग़ी से...प्रत्येक दृश्य का वर्णन बहुत सुंदर है मनोज जी....प्रवाह में जहां जो तथ्य होने होते हैं...वो वहीं हैं...जो कभी-कभी .... पटाक्षेप को प्रभावित करते हैं...अच्छी संस्मरणात्मक कथा है...शुभकामनाएं
ReplyDeletemanoj ji..its too gud..keep going :)
ReplyDelete@ राजेशजी
ReplyDeleteजीवन की सच्चाई कभी कभी बहुत कठोर होती है, या फिर बिल्कुल रुई की तरह नरम. ज़िंदगी हमेशा चौंकाती है.
शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद
@parul
ReplyDeletethanks for visiting and commenting. hope to write some more soon.
best
Manoj K
मनोज जी
ReplyDeleteकहानी बहुत अच्छी लगी प्यार के लिए अपने करियर तक को छोड़ देना ?आजकल बहुत कम होता है |
अच्छा संदेस देती कहानी सच्चे प्यार की |
kahaani bahut pasand aayi ..
ReplyDelete@ ranjana ji
ReplyDeleteधन्यवाद
अरे वाह!
ReplyDeleteपढना शुरू किया ये सोचकर कि देखूँ क्या लिखते हैं, केमिस्ट्रि के बारे में।
सोचा नहीं था की पूरा पोस्ट पढूँगा।
पर फ़िर पढता गया, पढता गया और अचानक खयाल आया कि कहानी तो खत्म हो गई!
ये दिल माँगे मोर!
सावधान!
कोई फ़िल्म निर्माता इस कहानी को चुरा न लें।
वैसे इस कहानी को लेकर हृषिकेश मुखर्जी की एक अच्छी फ़िल्म बन सकती है।
Cast:
Aakash: Amol Palekar
Anju: Jaya Bhaduri
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ, बेंगळूरु
वर्ष १९७०, नसीराबाद, अजमेर। लड़का भीड़ में पीछे खड़ा है। लम्बा आदमी भीड़ में दसवीं का परिणाम देख रहा है। लम्बाई का नफा है उसको।
ReplyDeleteलम्बा आदमी कहता है - इसमें तो रोल नम्बर नहीं दिख रहा।
लड़का परेशान होता है। फिर कहता है - अंकल, जरा मैरिट लिस्ट में देखिये।
अरे हां, यहां नाम है। आठवें नम्बर पर!
यह मेरी कहानी है! ज्ञानदत्त पाण्डेय की!
@ G Vishwanath
ReplyDeleteअमोल पालेकर...
मेरा फेवरेट है. 'पहेली' फिल्म भी क्या खूब बनायीं थी
आपका स्वागत है ब्लॉग पर.. फिर पधारना.
आभार
मनोज खत्री
@ज्ञानदत्त पाण्डेय जी
सर, स्वागत है आपका ब्लॉग पर,, आप जैसे सधे हुए ब्लोगर्स का स्नेह और आशीष मलता रहे यही कामना है.
आभार
मनोज खत्री