शगुन
इस बार नानीजी के गया और कुछ दिन रुकना हुआ, एक-दो दिन रुकना होता है तो आस पड़ोस के हाल चाल पता नहीं चलते । नानीजी के घर के सामने वाले मकान में एक ८०-८२ वर्ष की वृद्धा रहती हैं, विधवा हैं, पति की मृत्यु हुए शायद दस या उससे भी ज्याद वर्ष बीत गए । तीन पुत्रों में से सबसे छोटे वाला उनके साथ रहता है । मालूम हुआ के वृद्धा नितांत अकेली हैं और सबसे छोटे पुत्र ने स्टेशन पर दुकान ले ली है और अब अपनी पत्नी और दो पुत्रों के साथ वहीँ पहले माले पर रहता है। सुबह का खाना बड़े वाले लड़के के यहाँ से आता है और शाम का बीच वाले लड़के के यहाँ से, टिफीन में । मन उस दिन बहुत उदास रहा, सोचा जाकर उन तीनो भाइयों को खरी-खरी सुनाऊं या फिर वृद्धा की मदद के लिए गाँव के सरपंच से बात करके वृद्धावस्था पेनशन का इंतज़ाम करवा दूं... या फिर किसी समाजसेवी संस्था के द्वारा अच्छे वृद्धाश्रम में रहने का इंतेज़ाम करवा दूं, पर सारा सोच-विचार दिमाग के कमरे में बंद रहा, सोचा कुछ नहीं तो जाकर अम्मा से मिल तो आऊं, जब स्कूल की समर वेकेशन में नानीजी के आते थे तो अम्मा से जाकर मिलते थे और उनके नाती के साथ खूब क्रिकेट की ओपनिंग बेटिंग की है, लेकिन समय नहीं निकाल पाया और जयपुर लौटने का दिन आ गया, शाम को निकलने को था की छोटी मौसी ने कहा..मनोज अभी रूककर जाना अम्मा बाहर गली में है शगुन ख़राब हो जायेंगे..नानीजी तो बस फिर -- कहाँ से आती है..वैसे तो पूरे दिन पड़ी रहती है और अब लड़के के शगुन ख़राब करेगी..मौसी ने फिर दुसरे रस्ते से मुझे स्टेशन रवाना किया ।
मन में बड़ी उहापोह लगी हुई थी, क्या यही जीवन है..जिन बच्चों को प्यार किया सब कुछ दिया वही छोड़ चुके हैं अपनी माँ को..मरने के लिए ।
स्टेशन पहुंचा तो लक्ष्मण जी की दुकान के सामने से गुजरा तो आवाज़ दी..मनोज भैया कैसो हो--- अरे मैं बीच में जयपुर आया था समय नहीं निकल पाया तुम्हारे घर आने का ।
अम्मा अकेली हैं आजकल ......मैंने पूछा
अरे मनोज भैया क्या बताऊँ अम्मा ने जीना हराम रखा था, मेरे यहाँ दर्द है कभी कहती यहाँ..अच्छा बताओ कभी ऐसा होता है
बुढ़ापा अपने आप में रोग है - मैंने कहा
हाँ ठीक कहते हो..अम्मा अब चली जाएँ तो ठीक
कलेजा फटने लगा
..मन में आया के एक रसीद करदूं..गुस्सा जल्दी आता है मुझे
बच्चे आपके भी बड़े हो गए लक्ष्मण जी..सयाने भी हो जायेंगे आपकी तरह
ट्रेन के आने का समय हो चला था और में उनकी दुकान से रवाना हो लिया
कुछ भी नहीं बोले लक्ष्मण जी उनकी चुप्पी बोल रही थी..मनो मुझसे कुछ कह रहे हों पीठ पीछे
आज दस दिन हुए जयपुर पहुंचे हुए सारी बेड न्यूज़ गुड न्यूज़ में बदल गयी हैं......
मैंने आते हुए एक नज़र अम्मा को देखा था , शायद वह मुझे पहचानने की कोशिश कर रही थी हाथ से चश्मे पर छाया बनाकर.......
शगुन अच्छा हुआ......
maarmik...jisne hamko seencha hardam wo maali kyun tanha hai...
ReplyDelete@दिलीप जी
ReplyDeleteटिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद .
बहुत वेदना हुई इसलिए ब्लॉग पर लिखा, कई वाकये हमारे साथ पेश होते हैं पर कुछ ही होते हैं जो हमारे विचारों को झकझोर देते हैं, यह भी उनमें से एक था.
ब्लॉग पर आते रहिएगा और हौंसलाअफजाई करते रहिएगा.
सादर
मनोज खत्री
अगर आप अम्मा के साथ कुछ पल बिताते तो उनके झुर्रियों से भरे चेहरे पर मुस्कान खिल जाती है....नहीं जानती कि माँ बच्चों को एक साथ पालती है लेकिन बच्चे ऐसा क्यों नही कर पाते...
ReplyDelete@ मिनाक्षी
ReplyDeleteशायद आप ठीक कह रही हैं. अबकी बार जाऊँगा तो ज़रूर इस बार की भूल सुधार आऊँगा .
जीवन के तजुर्बों में अभी नौसिखिया हूँ , सीखना जारी है....ब्लोगिंग करने का एक उद्देश्य यह भी के में जानूं अपनी कमियों के बारे में, अपनी खूबियों के बारे में. कमियों को कम कर सकूं और खूबियों को निखार सकूँ.. गाईड करते रहिएगा...
ब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद. आते रहिएगा
सादर
मनोज खत्री
अम्मा की वृद्धावस्था पेंशन नही हो सकती क्योंकि नियमानुसार उनके बालिग़ बेटे हैं.इसलिए यहाँ आप और हम उनकी चाह कर भी कोई मदद नही कर सकते.
ReplyDeleteवे कोर्ट में अपने गुजर बसर हेतु बेटों के विरुद्ध दावा पेश कर सकती है ,कोर्ट बेटों को बाध्य कर सकती है आर्थिक सहायता हेतु,किन्तु इस उम्र में सेवा करने वाला कोई उनके पास होना जरूरी है और आम भारतीय माता पिता कष्ट सः लेंगे पर अपनी निक्कमी औलादों के विरुद्ध भी इस तरह के कदम उठती नही है.शायद कोई धर्मार्थ चलने वाला वृद्धाश्रम उन्हें रखने को तैयार हो जाये.
शेष.....जिनके घर में बालिग पुत्र ना हो उनके लिए समाज कल्याण विभाग पेंशन देती है.एक फॉर्म मिलता है वृद्धाश्रम पेंशन फॉर्म उसे भर कर जो भी औपचारिकताएं पूरी करने को कहा गया है-जो ज्यादा टिपिकल नही है-उन्हें पूरी कर फॉर्म समाज कल्याण विभाग में जमा करा दिया जाये.'डिजर्विंग केंडीडेट'को आर्थिक सहायता यानि पेंशन मिलनी शुरू हो जाती है. यही प्रक्रिया विकलांगता पेंशन के लिए भी करनी होती है.
मेरे ब्लोग पर आये और एक के बाद एक व्यूज़ दिए.अच्छा तो लगा ही बेशक.थेंक्स. 'आरती' और भाभुसा भी पढ़ना शायद पसंद आये.
@इंदु जी
ReplyDeleteआपकी टिप्पणी देखकर अच्छा लगा.
यह आपने बिलकुल ठीक कहा के भारतीय माता पिता अपनी संतान के विरुद्ध कोई कड़ा कदम उठाना नहीं चाहते.
इस बार जाऊंगा तो कुछ ठोस ज़रूर करूँगा, चाहे मेरी छुटी पूरी इस काम में लग जाए .
आभार
मनोज खत्री