सब ठीक ठाक है...

ट्रैन कुछ  बीस मिनट लेट चल रही थी. आनंद की नींद सवाई माधोपुर स्टेशन पर ट्रैन रुकने पर खुल गयी, आनंद को मालूम था कि ट्रैन यहाँ पंद्रह - बीस मिनट रूकती है, उसने प्लेटफार्म पर उतरकर  चाय पी, कुछ बिस्किट और चिप्स ली, तभी उसकी नज़र फ्रूट वाली रेड़ी पर पड़ी, उसने वहां से अमरुद ख़रीदे, रेड़ी वाले को देने के लिए जेब से वॉलेट निकला ही था, कि फ़ोन बजा, आनंद ने सोचा इतनी सुबह कौन कॉल कर रहा है, मोबाइल जैकेट की जेब से निकाला  ... देखा तो निवेदिता का कॉल
हेलो ...हाँ निवि... आनंद ने कहा 
कहाँ हो तुम ...कुछ घबराई सी आवाज़ में निवेदिता ने पूछा 
मैं यहीं प्लेटफार्म पर ...आता हूँ ...आनंद ने कहा 
आनंद ने अमरुद, चिप्स और बिस्कीट एक पेपर बैग में डालकर, अपनी बाँह  में दबाके, दो कॉफ़ी लेकर कोच तक पहुँचा तो देखा निवि दरवाज़े पर ही खड़ी है ...

कहाँ चले गए थे एंडी...
बस यहीं प्लेटफॉर्म पर ही था, कुछ खाने के लिए लिया है, ये कॉफी लो तुम... कॉफ़ी के कप्स निवेदिता को देते हुए आनंद ने कहा
निवेदिता ने फ़ोन लोअर के पॉकेट में रखा और  झुककर  कॉफ़ी के कप्स लिए, आनंद की नज़र पड़ी, निवेदिता को भी मालूम हुआ, निवेदिता मुड़कर बर्थ की तरफ बढ़ी और आनंद भी कोच में चढ़ा...
बर्थ पर बैठकर निवेदिता ट्रैन और प्लेटफॉर्म की कुछ बात करने लगी, कॉफ़ी के सिप लेते हुए...
आनंद कुछ नर्वस, कुछ गिल्टी फ़ील कर रहा था, आंख मिला के बात नहीं कर पा रहा था, कुछ मिनटों बाद निवेदिता बात करते हुए अचानक रुक गयी, आनंद ने सहसा उसकी ओर देखा और कहने लगा... बात पूरी करो... 
निवेदिता ने कहा... ईट्स ओके एंडी, यू डिड नॉट डू इट विलिंगली, हैपेन्स...
डोंट थिंक अबाउट इट सो मच...
आनंद को कुछ राहत महसूस हुई...
निवेदिता ने अपना हाथ आनंद के हाथ पर रखा, ईट्स ओके...और एक लंबी स्माइल दी..
आनंद भी मुस्कुराया...
सामने की नीचे वाली सीट पर एक वृद्ध व्यक्ति सो रहा था, बीच वाली बर्थ खाली थी, उसपर ब्लैंकेट और चादर को बड़े करीने से तह करके रखा गया, जो व्यक्ति इस सीट पर था, और शायद पिछले किसी स्टेशन पर उतर गया, उसने पब्लिक प्रॉपर्टी का मान रखा. सबसे ऊपर वाली दोनों बर्थ खाली थीं. सामने की तरफ ऊपर वाली बर्थ पर एक अधेड़ पुरुष ख़र्राटे भर रहा था. आनंद और निवेदिता की बातें बंद हो गयीं, दोनों खिड़की के बाहर खेतों और मकानों को देख रहे थे... निवेदिता ने भैसों का झुण्ड देखती तो आनंद को इशारा करती... लुक एंडी ... आनंद देखता और मुस्कुराता ... आनंद ने एक बारगी कुलाचें भर्ती नीलगायों का झुण्ड निवेदिता को दिखाया ... निवि ने अचरज से देखते हुए कहा ... दे रन सो फ़ास्ट न ... 

सूरज उदय हो चुका था, धूप थर्ड कांच की खिड़की से निवेदिता के चेहरे पर आ रही थी, आनंद ने उठकर खिड़की पर पर्दा खींचना चाहा तो निवेदिता ने रोक दिया... सुबह की कच्ची धूप अच्छी लगती है..
आनंद रुक गया

बातों का सिलसिला फिर शुरू हुआ, कुछ कॉलेज की, कुछ एक्सपो की और कुछ फिल्मों की पसंद नापसंद पर बात हुई. ट्रैन जयपुर की तरफ बढ़ रही थी. आनंद ने निवेदिता से कहा... मुझे जयपुर जंक्शन से पहले वाले स्टेशन दुर्गापुरा उतरना है, मेरा घर वहां से नज़दीक पड़ेगा... 
निवेदिता ने कहा, ईट्स ओके, आय विल बी फाइन..

आनंद जैसे ही दुर्गापुरा स्टेशन पर उतरा, सबसे पहले उसने पूनम को कॉल किया...
चाँद... कैसी हो
मैं अच्छी हूं... साहब की ट्रेन जयपुर पहुंच गई क्या...
हां जी..पहुंच गई.. कैब लेके घर जा रहा हूं, चेंज वगैरह करके वहीं से तुम्हारे पी.जी. आऊंगा ... 
क्यों ..मेरे पी.जी. क्यों आ रहे हो...कुछ लाये हो मेरे लिए...चहकते हुए पूनम ने कहा
मैं आ गया न...
पूनम हंसी...

मोहित ने आनंद को जल्दबाज़ी को फ़्लैट में आते हुए और फिर फटाफट तैयार होकर जाते हुए देखा..
अबे इत्ती क्या आग लगी है... टूर करके आया है ना.. आराम से जा ऑफिस...
नहीं यार एक मीटिंग है..
आनंद पूनम के पी.जी. पहुंचता है.. पूनम को कॉल करके नीचे बुलाता है और दोनों ऑफिस के पास वाले कैफ़े में पहुंचते हैं..
पूनम कुछ समझ नहीं पाती... 
आनंद दो कॉफ़ी आर्डर करता है और पूनम से कहता है...
चाँद, मम्मी आ रही है कुछ दिनों के लिए, अगले वीक, पापा भी आएंगे संडे को... मैं सोच रहा तुमको मिलवाऊं मम्मी और पापा से ..
पूनम का कॉफ़ी का घूँट गले में ही अटक जाता है... वो कुछ खांसते हुए कहती है... क्या हुआ...
आनंद कहता है ... आय थिंक, पेरेंट्स की नॉलेज में रहे तो ठीक है, बात जब आगे बढ़ानी होगी तो दिक्कत नहीं होगी ... 

पूनम मुस्कुरायी...तुम बहुत जल्दी में हो...
आनंद मुस्कुराया और कॉफी में शुगर सैशे डालते हुए धीरे से बोला... तुमसे कम..
पूनम ने आँखें फैला कर नकली गुस्सा दिखाया और अपने चिर परिचित अंदाज़ में मुँह पर हाथ रखकर हंसने लगी...

- मनोज के.




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