मोटरसाइकिल डायरीज़


एक छोटे शहर की बोझिल ज़िन्दगी से निकलकर वहां का बाशिंदा बड़े शहर या महानगर का रुख करता है, इसलिए क्योंकि उसे लगता है यह जगह, यह छोटा शहर या क़स्बा उसके सपने के लिए छोटी जगह है. उसके सपनों को परवाज़ भरने के लिए ज्यादा जगह और मौका चाहिए, जो उसे इस कस्बे में नहीं मिल सकते. 



लेकिन, विकास या विक्की जैसा उसको दोस्त पुकारते हैं, का सिस्टम कुछ उल्टा था, दिल्ली जैसे बड़े शहर में पढ़ा, लेकिन दिल करता पहाड़ों में जाकर कहीं बस जाने की. उसके दोस्त चिढाते भी खूब, 'अबे यह क्या लड़कियों वाली फंतासी पाले बैठा है, पहाड़ों में घर, राजकुमार लकड़ी काटकर लायेगा और शाम को दोनों तारों की छाँव में साथ बैठकर खाना खाते और फिर घंटे बतियाते रहें'. विक्की मनो चिकना घड़ा, उसको अपनी बाइक पसंद और शौक़ दूर दराज़ गांवों में राइड पर निकल जाना. मास कॉम ख़त्म करने के बाद मानो भगवान ने उसकी सुन ली, उसको जॉब मिली रुड़की शहर में, यह शहर छोटा था, मगर इस जगह आर्मी केंट है, आई.आई.टी. जैसी संस्था है और खासी चहल पहल है, और क्या चाहिए जीने के लिए. रुड़की से २-३ घंटे में वह पहाड़ों पर पहुँच सकता था, चाहे मसूरी हो या ऋषिकेश. मम्मी के पास दिल्ली जाना हो तो भी ४ घंटे में घर. इट वाज़ लाइक अ ड्रीम कम ट्रू....

विक्की को रहने का ठिकाना मिला धीमन साब के यहाँ, रेलवे मुलाज़िम थे, सहारनपुर के रहने वाले थे. मकान कई साल पहले बनवाया, ऊपर एक पोर्शन बनवाया सालेक भर पहले..किराये पर उठाया था, किसी दवा कंपनी वाले सज्जन को दिया था, महीने में एक बार आते और कई बार दो महीनों में, मिसेज़ धीमन से रहा नहीं गया, और एक दिन धीमन साब से कहकर पोर्शन खाली करवा लिया. उनके विचार से पोर्शन किराये पर इसलिए दिया जाता है ताकि रौनक बनी रहे, लोग-बाग आते जाते दिखें, न की कई दिनों तक सन्नाटा छाया रहे. धीमन दम्पति की एक ही संतान थी, लड़की, जो देहरादून में बयाही थी और सुख से थी. मिसेज़ धीमन अकेलेपन की शिकार थी, चाहती कोई संगत हो जाए, और नहीं तो आना जाना लगा रहे !!

विक्की को देखकर मिसेज़ धीमन को लगा मनो उनका बेटा होता तो ज़रूर ऐसा ही सजीला नौजवान होता. मिसेज़ धीमन ने कोहनी से धीमन साब को इशारा किया और तीसरे ही दिन विक्की बाबु अपना सामान अनपैक करते नज़र आये. विक्की बाबू नाम मिसेज धीमन ने ही दिया, वह ठहरी पहाडन, दिल्ली जैसे बड़े शहर के नौजवान को क्या कहे...

विक्की के दिन मस्ती में गुजरने लगे, छोटा सा शहर था, १५ दिन में ही नाप डाला, और तो और हरिद्वार २ बार चक्कर मार आया, सब अपनी रामप्यारी पर, बाइक का नाम रखा था उसके दोस्त मनीष ने. ऑफिस में भी काम का प्रेशर ज्यादा नहीं था. छोटी सी एड एजेंसी थी. खुराना साहब मालिक थे और कुछ २०-२२ का स्टाफ था. सबसे पटरी बैठ गयी विक्की की. विक्की का स्वभाव मिलनसार था. विक्की की एक चीज़ और मशहूर थी, उसके ऑफिस कलीग्स और कॉलोनी में...वह थी उसकी मोटरसाइकिल, धक् धक् सी आवाज़ करती तो सब समझ जाते विक्की आ गया. 

सन्डे या और किसी छुट्टी के रोज़ अरुणा आती... अरुणा, धीमन साब की बेटी विक्की को भैया कहती तो विक्की बोलता कहो दीदी.. सुमंत जी, अरुणा के पति विक्की की मोटरसाइकिल पर लट्टू हो गए, बोले यार मैंने भी लेनी है तेरे जैसी... घर का मेम्बर सा हो गया विक्की. टिंकू, सुमंत और अरुणा का बेटा जो ६ साल का है, विक्की का नोट २ मोबाईल ले लेता और पूरे दिन वापस नहीं देता

मिसेज़ धीमन से विक्की की खूब पटा करती थी, उनसे कई जगह की मालूमात हासिल करली थी विक्की ने, जहाँ राइड और ट्रेकिंग के लिए जाया जा सकता था. ऐसी जगह जो विकिपीडिया और गूगल बाबा भी नहीं जानते थे, पर्यटकों से बिलकुल दूर. यूँ तो राइड के लिए हिमाचल और लेह लद्दाख ज्यादा मशहूर हैं मगर विक्की ने उत्तराँचल देखा और उसको लगा यह भी हिमाचल से कम नहीं है ! मिसेज़ धीमन पड़ोस में विक्की के गुणगान करते नहीं थकती थी, कहती लड़का बहुत संस्कारी है, अगर विक्की पास होता तो उसे एकाएक अलोक नाथ साहब याद आ जाते...हलके से मुस्करा भर देता.

कुछ मकान दूर एक पुराने से बने हुए, बोझिल पीले रंग सी पुती दीवारों वाला यह मकान कई बार आते जाते विक्की को क्युरिअस करता. बरामदे में कपडे सुखाती, धान बिनती एक लड़की जो कुछ २७-२८ बरस की रही होगी मगर लगती अपनी उम्र से १० साल बड़ी.. एक आध बार उससे नज़र मिली, सिवाय खामोशी और उदासी के कुछ नज़र नहीं आया. मिसेज़ धीमन ने एक बार बातों बातों में विक्की को बताया कि गीता और उसकी बेटी जो अब १२ बरस की होने को आई उस मकान में रहते हैं, गीता और अरुणा एक ही क्लास में थे, साथ ही साईकिल पर स्कूल आया जाया करते. मगर स्कूल पूरा हो उससे पहले घरवालों ने उसकी शादी करवा दी, जल्दी शादी हुई तो जल्दी उसकी गोद भी हरी हो गयी. बच्ची कुछ ७-८ महीने की रही होगी तब पति एक रोड़ एक्सीडेंट में चल बसा. किसी ट्रांसपोर्ट कंपनी में सुपरवाइजर था.. सारा परिवार रामपुर ही था, नौकरी भी शहर में ही थी...एक दिन सेठजी के कहने पर यू.पी. बोर्डर पर सेल्स टेक्स वालों को दक्षिणा देने के लिए भेजा. सेठजी के कई ट्रक आते जाते थे, वह भी साथ हो लिया, मगर वह उसकी आख़िरी यात्रा थी. सेठ ने यह कहते पल्ला झाड लिया की लाखों रुपये दिए थे मुलाजिम को, जबकि सारा स्टाफ़ और गीता जानती थी कि महीने की बंधी कुछ १०-१५ हज़ार से ज्यादा नहीं है. खैर सेठ ने एक फूटी कौड़ी मुआवज़ा नहीं दिया और गीता के ससुराल वालों ने उसे घर से अलग कर दिया कि वह और उसकी बच्ची अभागी हैं...

विक्की को अन्दर तक भिगो गयी उस शाम यह बातचीत, रात को देर तक सोचता रहा, क्यों गीता को उसके ससुराल वालों ने अपने घर में जगह नहीं दी. क्यों एक फूल सी बच्ची को अनाथ की तरह बड़ा होना पड़ रहा है, आखिर क्यों... न जाने कब उसकी आँख लगी, सुबह सात बजे मोबइल पर धीमन साब का कॉल देखकर झटके से उठा, "जी, जी अंकल, जी अभी आता हूँ, आप नाश्ता शुरू करो, तबीयत एकदम ओ.के. है".

उस दिन शाम को फ्रूट एंड नट्स खरीद लाया, देखा उस बोझिल पीले मकान से गीता की बेटी लक्ष्या साईकिल पर आ रही थी. विक्की ने उसे चॉकलेट दी, पहले वह कुछ सकुचायी फिर उसने रख ली. गीता की आँखों में हल्की बहुत हल्की सी चमक देखी विक्की ने, या फिर हो सकता है यह उसका वहम हो... यह सिलसिला कुछ यूहीं चलता रहा.

एक शादी में जाने के लिए मिसेज़ एंड मिस्टर धीमन ४ दिन के लिए सहारनपुर गए, मिसेज़ धीमन तो जाना नहीं चाहती थी, कहती विक्की बाबू को परेशानी होगी, कहाँ खाना खायेगा कहाँ चाय पियेगा. पर रिश्तेदारों के लगातार आते फ़ोन उनको रोक न सके. 
विक्की बाबू सिर्फ ३-४ दिन की बात है... जाने को दिल तो नहीं है... 
आंटी आप हो आओ, मैं मैनेज कर लूँगा, इसी बहाने अच्छा खाना खाने को तो मिलेगा. 
हैं सच, मेरे हाथ का खाना पसंद नहीं विक्की बाबू..
आंटी, माँ के बाद सिर्फ आपके बनाये खाने पर फ़िदा हुआ हूँ.. आप जाओ लेट हो रहे हो..

विक्की को पहले दिन थोड़ी परेशानी हुई, बस स्टेंड के सामने पंजाबी ढाबे पर पियक्कड़ ज्यादा मिलते, सागर रेस्तरां में खाना महंगा था, रोज़ के लिए नहीं था. किसी ने सजेस्ट किया जैन भोजनालय बस स्टेंड पर खाओ.. वहां का खाना ठीक लगा मगर सर्विस बड़ी स्लो थी. चाय का जुगाड़ मैगी पॉइंट पर हो गया था, दबा के मैगी खाओ डबल चाय और फिर ऑफिस.

आंटी मैं ठीक हूँ, हाँ पौधों को सुबह पानी डालता हूँ. जी २-३ दिन और लगेंगे..जी ठीक है, कोई नहीं... मैं मैनेज कर लूँगा.. जी .. 

तीसरे दिन गीता घर आई, शाम के वक़्त, बोली आंटी का फ़ोन आया था, आपको कोई परेशानी हो तो आप खाना हमारे यहाँ..

विक्की बोलना तो चाह रहा था कि वह मैनेज कर लेगा पर होठों पर यही बात आई ..
जी शाम को परेशानी होती है, ढाबे पर बहुत भीड़ होती है, खाना भी ठीक नहीं होता... 

जी आप ८ बजे तक आ जाईएगा ..

मैं अभी चलता हूँ, यहाँ अकेले काम भी क्या है..

दोनों पैदल ही उस बोझिल पीले मकान की तरफ चल पड़े... रात बड़ी देर तक लक्ष्या से बातें होती रही.. क्या पसंद है उसको क्या बनाना चाहती है, साईकिल इतनी तेज़ क्यों चलाती है..वगैरह..वगैरह..

तीन दिनों तक यह सिलसिला यूहीं चलता रहा, जब मिसेज़ धीमन लौटीं तो देखा ऊपर ताला लटका है, रात के दस बजे यह लड़का कहाँ गया होगा !!

हाँ आंटी आप आ गए, मैं बस यहीं पास ही हूँ, अभी आता हूँ... 

मिसेज़ धीमन लगातार देख रही थीं, जब से वह लौटीं हैं, विक्की रात को दस साढ़े दस से पहले लौटता नहीं , इधर पड़ोसी भी कुछ कानाफूसी करने लगे, बात यह भी सुनी गयी कि विक्की एक रात लौटा ही नहीं, पांडे जी ने तड़के ४.३० पर उसको घर में आते देखा था. मिसेज़ धीमन से रहा नहीं गया , एक दिन शाम को गीता को बुला भेजा.

विक्की ऑफिस से लौटा तो देखा गीता पल्लू मुंह में दबाये तीर की तरह मेन गेट से बाहर निकली, आँखों की कोर कुछ भीगी हुई सी थीं.

आंटी गीता कुछ टेन्स सी लग रही थी, सब ठीक तो है, लक्ष्या ....
इतना कहकर वह गीता के पीछे लपका... कुछ देर बाद लौटा तो देखा मिसेज़ धीमन अपने पति के साथ गार्डन में बैठी हैं.. वे लोग कुछ बोलें उससे पहले ही विक्की बोल पड़ा...

आंटी आप तो समझते. गीता अकेली माँ है, बहुत भार है उसके कन्धों पर, लक्ष्या की परवरिश, माँ के बाद पिताजी का ख्याल रखना, नौकरी में ध्यान दे या बीमार पिता की सेवा-सुश्रा करे.. अपनी बच्ची की आकांक्षाएं पूरी करे, घर का काम काज...
विक्की का वॉल्यूम थोड़ा लाऊड था, थोड़ा नहीं ज़्यादा ही..

मुझसे एक साल बड़ी एक बहिन थी, वह नौंवी में थी और मैं आंठवी में, दोनों की अलग अलग साईकिल हुआ करती थी, दोनों स्कूल तक रेस किया करते थे, वह हमेशा पहले पहुँच जाती.. एक दिन मैं आगे निकल गया, लेकिन मेरा बैलेंस नहीं बना और एक ब्लू लाइन से बचाने के चक्कर में दीदी ने मुझे धक्का देकर गिरा दिया मगर उनकी साईकिल की टक्कर हुई एक स्कूटर से और वह गिर पड़ी, ब्रेन हेमरेज हुआ था उनको, बाहर कोई खून नहीं निकला. तीन दिन तक नीम बेहोशी की हालत में थी, २ ऑपरेशन हो चुके थे, लेकिन डॉक्टरों ने फिर साफ़ मन कर दिया.. लक्ष्या को देखता हूँ तो दीदी की याद हो आती है, अरुणा को देखता हूँ तो वोह स्नेह याद आ जाता है, माँ के बाद आपको जगह दी है आंटी... आप तो समझते... जिस रात मैं घर नहीं आया था, उस रात गीता के पिताजी को अस्पताल ले जाना पड़ा, दमे का दौरा खतरनाक था, डॉक्टर ने कहा था, अगर कुछ और देर हो जाती तो ....
आंटी आप तो समझते...

ड्राइववे में घुटनों के बल, बैठते, दो बूंदे कोटा स्टोन के स्लैब पर छिटकते हुए अपनी मोटरसाइकिल पर नज़र डाली, वह इसे साइड स्टेंड पर कम ही खड़ा किया करता था.

विक्की बेटा... समझ गयी मैं सब समझ गयी, मिसेज़ धीमन के आँखों से अश्रुधारा बह निकली... विक्की का सिर अपने काँधे पर रखते हुए, फिर कहा, मैं समझ गयी बेटा, मैं समझ गयी......


Comments

  1. आम जीवन पर कितने खास उतार चढ़ाव..... अच्छा लगा डायरी का ये पन्ना

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  2. Title is super magnetic ' Motorcycle Diaries' and your writing has a grip, reader can't resist reading till end. Waiting for another chapter from the McD series. Excellent work keep it up.

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    1. McD, I am loving this name !!
      Thanks Vinish

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  3. I like ur way of portraying the whole drama.Creates entire scenario in front of eyes.

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  4. बहुत अच्छी कहानी.
    घुघूतीबासूती

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  5. Log hamesha samjhte hain ki bhavanayein wahi hai jaise wo dekh ya samajh pa rahe hai...lekin sach to yeh hai ki bhavnayein wahi jante hain jinke beech wo panap rahi hai!!Very nicely put Manoj!

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  6. अपने ही परिवेश का रेखांकन लगता है ..

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