सुनहरी किनार वाली नीली साड़ी

टाइम पर ऑफिस पहुँचने वालों में शामिल थी यह लड़की, आशा. इस नाम के अलावा भी कोई और नाम हो सकता है, किसी भी महानगर के किसी भी ऑफिस में हो सकती है यह लड़की. उम्र यही कोई २६-२७ बरस, कुछ लोग इसे शायद गलत भी मानें, और शायद आशा को औरत कहें. आशा एक बेहद साधारण नाक नक्श वाली दुबली पतली लड़की है (थी इसलिए नहीं क्योंकि वह और उस जैसी न जाने कितनी अभी भी कई ऑफिसों में होंगी). वह शादीशुदा है, पति पेशे से इंजिनिअर है और एक मझोले दर्जे की कंपनी में अपनी सेवाएं दे रहा है. उसका एक पैर कुछ खराब है, साफ़ कहिये तो उसके पैर पर पोलियो का असर है. फिर भी आशा अमित से प्यार करती है, यह प्यार शादी के बाद वाला प्यार है. इसमें कुछ समझदारी की भी मिलावट होती है.

बहराल शादी के शुरुआती ६ महीनों में उन्होंने सारे रीती रिवाज़ निभाए, दोनों घूम भी आए (हनीमून पर जा आए) और बहुत सारी फ़ोटोज़ फेसबुक पर अपलोड भी कर दीं. दोनों खुश थे, ऐसा सबको लग रहा था. शादी को लगभग ४ साल हो आए, आशा का जीवन यूहीं चलता रहा. इन्हीं दिनों ऑफिस में कुछ बदलाव हुआ, सब लोगों के कयुबिक्ल बना दिए गए थे ताकि बिना तांख-झाँक के सब लोग अपना काम आराम से कर सकें. मगर इससे हुआ एकदम उलट, सब लोग ज़्यादातर चेट या पर्सनल मेल्स में उलझे रहते. आशा को भी चेट का काफी शौक़ था, मगर उसकी कोई ऐसी सहेली नही थी जिससे वह चेट कर सके. जो थीं उनके पास कम्प्युटर नहीं था. 

आशा अकाउंट्स में थी, कभी कभी उसे टेक सेक्शन से मेल आया करते थे, यह टेक सेक्शन आशा के फ्लोर के ठीक ऊपर वाले फ्लोर पर था. लंच टाइम में मेस में मुलाक़ात हुआ करती थी टेक वालों से. ले देकर तीन जने थे, एक हेड चौधरी सर, दूसरे मेहता साब और तीसरे यंग, डेशिंग, हेंडसम आनंद माथुर. आनंद का ईमेल आई. डी. भी एंडी करके कुछ था. इन दिनों दिन में दो तीन बार आशा से एंडी की चेट हुआ करती. ज्यादा कुछ नहीं. मसलन आज बहुत ज्यादा गर्मी है.. आज तो छोटे का मस्का बन खाया, अल्टीमेट है.. यू शुड विज़िट लोटस, ओसम फ़ूड एंड अम्बियंस..  यह ज्यादातर एंडी कहता था. आशा सिर्फ लिखती .. हाँ आज गर्मी है .. मस्का बन कभी खाया नहीं.... महारानी केफे में खाया था पिछले सन्डे को, अच्छा था. लंच में एंडी (आनंद बहुत लंबा है, एंडी ठीक रहेगा) और आशा एक ही टेबल पर खाना खाने लगे. आशा अपना टिफिन घर से ही साथ लाती, एंडी को मेस का बर्गर काफी पसंद था, सो वह वाही खाया करता, जब ज्यादा भूख लगती तो २ भी खा लेता, फिर चेट पर आशा से कहता भी..
यार गडबड हो गयी..
आशा मुस्कुराती.. एंडी ताड़ लेता ..
तुम हँस रही हो ना.. यू विल नेवर फील द पेन..

आशा अब थोड़ा मेक अप इस्तेमाल करने लगी. उसकी छोटी सी पतली नाक पर भगवान ने बड़ी बड़ी आँखें दी हैं. एंडी कहता रहता, तुम्हारा नाम मिनाक्षी होना चाहिए. उसने एक बार मस्कारा (वह जिससे पलकें कुछ और लंबी और खूबसूरत लगती हैं, लगती हैं ना) भी इस्तेमाल किया, उस दिन लंच में एंडी ने बर्गर नहीं खाया, सिर्फ कोक के सिप लेता रहा. आशा कभी कभी साड़ी छोड़कर सलवार कमीज़ और जींस-शर्ट भी पहन लिया करती थी. पर उसने नोट किया जब वह साड़ी नहीं पहनती थी तब एंडी दो बर्गर खाया करता था. आशा ने इन दिनों कुछ नयी साडियां खरीदी उसमें एक साड़ी नीले शिफोन की थी, थोड़ी थोड़ी दूर पर सुनहरे धागे थे, इस नीली शिफोन की साड़ी की किनारी पर सुनहरा बोर्डर था, ब्लाउज़ की बाहँ के छोर पर भी सुनहरा बोर्डर था. आशा को नीला रंग कुछ खास पसंद नहीं था पर एंडी हमेशा नीले रंग की टाइ पहनता, आशा को लगा शायद यह ऑफिस में अच्छी लगेगी.

हाई हील, नीले बोर्डर की साड़ी, मस्कारा और हल्का मेक-अप, गेहूवें रंग की आशा उस दिन किसी फिल्म की हेरोइन से कम नहीं लग रही थी. उस दिन लंच में एंडी ने कुछ नहीं खाया और ना ही कोक को हाथ लगाया, कोक की बर्फ छोटी होती रही और एंडी की आँखें बड़ी. आशा अब कभी कभी बाल खोलकर भी ऑफिस आया करती. आज सब कुछ कमाल था, नीली साड़ी खुले बाल, आज एंडी लगातार उससे चेट पर मैसेजेस भेज रहा है, वह सिर्फ हाँ हूँ कर रही है. एंडी ने उससे कहा आज मिल्की वे चलते हैं, मौसम भी ठीक है, तुमको वहाँ का फेमस आईस क्रीम शेक टेस्ट करवाता हूँ. आशा को लेने वह उसके कयुबिक्ल तक आया. आशा कुछ असहज हो गयी. दोनों एक साथ लिफ्ट में सवार हुए, लिफ्ट में वह दो ही थे, अचानक लिफ्ट झटका खाकर रुकी, बत्ती बुझी और फिर चालू हुई. इन ५-१० सेकण्ड तक जब लिफ्ट में अँधेरा था तो आशा ने एंडी का हाथ पकड़ लिया, उसे अँधेरे से घबराहट होती थी. थोड़ी देर में लिफ्ट चालू हुई. दोनों मिल्की वे पहुंचे, ज्यादातर यंग स्टुडेंट्स थे वहाँ. आशा अभी तक असहज थी. घर लौटकर बिना खाए सो गयी, अमित ने पूछा भी क्या बात हुई, आशा ने सिर्फ इतना कहा कि ऑफिस में देर हुई और अब उसे सरदर्द है.

एक दिन शाहरुख की फिल्म रिलीज़ हुई, एंडी जानता है की आशा को शाहरुख बेहद पसंद है, मेटीनी शो की दो टिकट ले आया. आशा ने मना किया पर शाहरुख और शनिवार, एंडी जीत गया. इंटरवल के ठीक बाद एक रोमांटिक सीन में एंडी ने कसकर आशा का हाथ पकड़ लिया और अपने होंठ आशा के होंठों तक ले आया, आशा ने तुरंत हाथ छुड़ाया. फिल्म अधूरी छोड़ आशा ऑटो पकड़ के सीधे घर. एंडी को उसका बिहविअर कुछ समझ नहीं आया. सोमवार को आशा ऑफिस नहीं आई, एंडी ने एक एस एम् एस किया
'नो फन एट मेस विथआउट यू.'
आशा का कोई जवाब नहीं आया.
आशा जब ऑफिस आई तो अपने कयुबिक्ल में बैठ कर ही लंच किया. कई दिन तक एंडी के चेट मैसेजेस का कोई जवाब नहीं दिया, फोन भी रिसीव नहीं किया
एक दिन लंच में एंडी आशा के कयुबिक्ल तक आया 'क्या यार आशा मेस में नहीं आती आजकल'
'बस मन नहीं करता' कहकर अपने कयुबिक्ल से निकलकर वाशरूम कि तरफ चली गयी. एंडी इंतज़ार करके वहाँ से चला गया.
अगले दिन सुबह आशा ने वही नीली साड़ी पहनी और बाल खुले रखे, मस्कारा और मेक अप भी ..
एंडी का चेट मेसेज आया.. 'आज तो आपके बदन की खुशबू यहाँ तक आ रही है.'
आशा ने लिखा:
मैं एक शादी शुदा हूँ और तुम्हारी इन हरकतों का जवाब एक तमाचे से या तुम्हारे डिपार्टमेंट के हेड शिकायत करके दे सकती हूँ.
मैंने तुम में एक अच्छा दोस्त पाया, तुमने मुझे सलीका दिया, मुझे अपनी काबलियत पर भरोसा करना सिखाया. मुझे बताया मैं अच्छी हूँ और खूबसूरत हूँ.
लिफ्ट जब मैंने तुम्हारा हाथ पकड़ा तो उस स्पर्श में एक दोस्त का अपनापन था, लेकिन जब तुमने थिअटर में मेरा हाथ पकड़ा तो उसमें लालच था, वासना थी.
अगर मुझे तुम्हारे इरादे पहले से मालूम होते तो शायद में इस रिश्ते को इतना बढावा ना देती. क्या एक लड़का और लड़की सिर्फ अच्छे दोस्त बनकर नहीं रह सकते.

आज मैंने तुम्हारी फेवरेट साड़ी पहनी है, तुम्हारे लिए नहीं अपने लिए...
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Comments

  1. स्पष्टवादिता, रोचक कथाक्रम..

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  2. बहुत रोचक कहानी ..... अपने मन की कहने की शक्ति बहुत कुछ बदल देती है....

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  3. चलो पहनी तो सही, चाहे अपने लिए ही सही,

    बढिया कहानी.

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  4. रोचक कहानी मनोज...बेहद दिलचस्प ...नारीमन को समझती
    कभी फुर्सत में ये कहानी भी पढना लिंक दे रही हूँ
    http://sonal-rastogi.blogspot.in/2011/01/blog-post_24.html

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  5. दिलचस्प कहानी।

    पढने के बाद यह सोच फ़िर मन मे आती है।
    क्या पुरुष और एक हमुम्र स्त्री के बीच platonic love या friendship संभव है?

    इसके कई उत्तर मिले है।
    १)नामुमकिन
    २)हाँ, संभव है पर केवल एक स्त्री के लिए, पुरुष के लिए नहीं. Men are wired differently. यदि कोई पुरुष यह दावा कर रहा है कि उसका प्रेम platonic है तो या तो वह झूठ बोल रहा है या वह नपुंसक है या उसे मन की कोई बीमारी है या औरत बेहद बदसूरत है!!

    ३)हाँ, संभव है, पुरुषों कि लिए भी पर एक खास उम्र के बाद ही या एक खास उम्र पहुँचने से पहले

    ४)हाँ, संभव है पर केवल पश्चिमी देशों में, हमारे repressive भारतीय समाज में नहीं।

    सही उत्तर क्या हैं अब भी मैं नहीं जानता

    शुभकामनाएं
    जी विश्वनाथ

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  6. Nice story...Good to see the different side of women......which not many men knowns nor believe in it that they need friend....

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