डोलची

दोस्तों, आप सब से बात किये हुए मानो ज़माना बीत गया. ज़िंदगी ने इन दिनों अपना रंग ख़ूब दिखाया. नानी का अवसान और उसके बाद घर के २ लोगों की अस्पताल में देखरेख ने समय नहीं दिया.
ब्लॉग पर आज आपसे फिर मुखातिब हूँ, उम्मीद है कहानी आप सब को पसंद आएगी....


९ फरवरी २०१२ का दिन, पुरानी दिल्ली स्टेशन, मैक डी में बर्गर और कोक के डिनर के बाद फिर से वेटिंग हाल पहुँचा. मासी और मामाजी छोले कुलचे खाकर सीटों पर सुस्ताने लगे. नानी की अस्थियाँ विसर्जन करने के बाद हरिद्वार से दिल्ली पहुँचे थे. लगातार सफर करने से थकान लाज़मी थी, मैं आराम के मूड में नहीं था. मंडोर एक्सप्रेस आठ पचपन पर रवाना होनी थी, घड़ी में बमुश्किल सवा सात बजे थे. मुझे सफ़र की आदत है, और इंतज़ार की भी. वेटिंग हाल में देखा एक तरफ सीट के पास एक दरी बिछी हुई है, एक अधेड़ व्हील चैयर से उतरने की कोशिश कर रहा है, वह धडाम से दरी पर गिर पड़ता है. कुछ फुट दूर बैठे साधुनुमा आदमी उसकी तरफ मुड़कर देखता है और कहता है - प्रकाश जी आज लेट?!. उस अपाहिज ने खुद को संभाला और सर्द हवाओं से बचने के लिए खद्दर कम्बल से खुद को ढंका, आँखों पर मोटा चश्मा रंगीन स्वेटर, जींस और स्पोर्ट्स शूज़ में एकबारगी महसूस होता है जैसे कोई पसेन्जर अपनी ट्रेन का इन्तेज़ार कर रहा है. साधुनुमा आदमी उठकर प्रकाश के पास आता है, उसके हाथ में एक थैली है जिसमें एक नली है, नहीं यह तो यूरिन बैग है. वह उसे उठाये ऐसे चल रहा है जैसे उसे कोई तकलीफ ही ना हो. आदमी प्रकाश के पास आकर बैठता है और कहता है- खाना ले आऊ? प्रकाश हामी में सर हिलाता है. आदमी वेटिंग हॉल से बाहर निकल जाता है. प्रकाश कोई किताब पढ़ रहा है, किताब का बैक कवर दिख रहा है, अंग्रेजी की कोई किताब है, शायद कोई नॉवेल, किताब की हालात बयाँ करती है कि उसे फुटपाथ किनारे की किसी स्टाल से ख़रीदा होगा, ऐसी दुकानें अक्सर रद्दी में बेची गयीं किताबें को साफ़ सुथरा करके करीने से सजाकर रखते हैं, इन किताबों में कोर्स की किताबों से लेकर उत्तेजक साहित्य तक उपलब्ध होता है. किताबों की कीमत उनकी असल कीमत से काफी कम होती है.

बहराल प्रकाश तल्लीनता से किताब पढ़ रहा है, उसके आस पास दो तीन कुकुर आकर बैठे हैं. प्रकाश उन्हें देखकर इस्माइल कर रहा है मानो यह सब उसके ड्राइंग रूम में बैठे मेहमान हों. हॉल में एक पुलिस कॉन्स्टेबल दाखिल होता है.
रे प्रकाश कैसा है तू ?
प्रकाश सैनिकों कि तरह उसे सलाम करता है और कहता है -
वधिया जी

साधुनुमा आदमी एक हाथ में यूरिन बैग और दूसरे हाथ में एक बड़ा सा पैकेट लेकर दाखिल होता है. दोनों जने आमने सामने बैठकर खाना शुरू करते हैं. प्रकाश धीरे धीरे खाना शुरू करता है, आदमी आधी चपाती का ग्रास बनाकर मुहं में ठूसता है. आधी रोटी के टुकड़े करके कुकुरों के सामने डाल देता है. प्रकाश अपने बड़े से थैले में हाथ डालकर एक डोल निकालता है, आदमी अपनी जगह से उठता है और पीछे नल से २ लीटर पेप्सी की बोतल में पानी भर लाता है. प्रकाश बोतल से पानी अपनी डोल में डालता है और थोड़ा पानी पीने के बाद कुत्तों को एक भद्दी गाली देता है और कहता है -
'आई विल कट यौर टेल्स एंड मेक यू डॉबरमैन'
आदमी के हाथ में देसी शराब का पव्वा है, पूरा डोलची में खाली कर देता है. प्रकाश हर कौर के साथ डोलची में से 'सिप' लेता है. आदमी पेप्सी की बोतल से पानी पीता है. प्रकाश चीखता है -
'पुलिस एंड पोलिटिक्स हेव रुइनड आर कंट्री'
हाल के सब लोग उस तरफ देखते हैं, साधुनुमा आदमी निर्विकार बड़े बड़े कौर खाता है. प्रकाश फिरसे अंग्रेजी में सिस्टम को गाली देता है. खाना नहीं खाता और डोलची में से एक एक घूँट भरता है. साधुनुमा आदमी एक लंबी डकार लेता है और खाने के पैकेट को पास के कूड़ादान में डालता है.

प्रकाश अब भी कुछ बोल रहा है मगर उसकी आवाज़ साफ़ सुनायी नहीं दे रही. साधुनुमा आदमी फिरसे अपनी पेप्सी की बोतल भर लाता है और आकर दरी को ठीक करता है, अपनी गठरी को सर के नीचे लगाकर लेट गया है और प्रकाश का हाथ पकड़ कर उसे भी सोने के लिए कह रहा है. प्रकाश ने अपनी टोपी और चश्मा अपनी गठरी के पास रख दिया और पुलिस को डर्टी कॉप्स कहता हुआ लेट गया. कुकुर भी ठंडी हवाओं से बचने के लिए पप्रकाश और साधुनुमा आदमी के पास पीठ टिकाये आँखें मूंदे सोने का नाटक कर रहें है. आने जाने वालों कि आहट पर अपना सर उठाकर देखते और फिर आगे के पैरों में पर सर रखकर फिर सो जाते हैं.

मंडोर लग गयी, चल चलते हैं. अब ट्रेन के अंदर ही आराम करेंगे- मामाजी बोले. हम लोग अपना सामान उठाकर प्लेटफोर्म की तरफ निकल पड़े !!

Comments

  1. रेलवे प्लेटफार्मों पर कहानियाँ बिखरी पड़ी हैं, उन्हें उठाने का आभार। नानीजी को विनम्र श्रद्धांजलि।

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  2. प्रवीन पांडेजी से सहमत।
    मैं भी वही कहने वाला था।

    रेलवे प्लैटफ़ॉर्म पर लेखक को कहानी लिखने के स्रोत ओर प्रेरणा, दोनों मिल जाएंगे। रेलवे प्लैटफ़ॉर्म ही क्यों, सभी सार्वजनिक स्थ्लों (जैसे बस अड्डे, ऐर्पोर्ट, बाज़ार वगैरह) पर सचेत रहने से, लेखकों को लिखने के लिए विषय और सामग्री मिल सकते हैं।

    यदि आप अपने मोबाइल फ़ोन के कैमेरा से कुछ तसवीर खींचकर यहाँ पेश करते, तो और भी अच्छा होता।
    ब्लॉग एक ऐसा माध्यम है, जिसमे न केवल शब्द, बल्कि तसवीरें, विडियो, और ध्वनि भी जोड सकते हैं। आशा है कि आगे आप इस माध्यम के सभी संभावनाओं का फ़ायदा उठाएंगे।

    आपके नानीजी को विनम्र श्रद्दांजलि
    जी विश्वनाथ

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    1. विश्वनाथजी
      मैंने तस्वीरें ली थी पर वह साफ़ नहीं आयी और यहाँ लगाने लायक नहीं हैं. खैर एक और सफ़र की साफ़ तस्वीरें हैं, उन्हें जल्द ही नई पोस्ट के साथ डालूँगा
      आभार
      मनोज

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  3. बहुत खूब लिखा है.
    भाषा और कहानी दोनों सजीव हैं.
    बधाई. और इतने दिनों बाद न आया करो :)

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    1. किशोर साहब,
      धन्यवाद. अगली पोस्ट जल्द ही डालने का प्रयास है.
      आभार

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  4. विश्वनाथ जी ने सब कह दिया है ... रेलवे प्लात्फोर्म पर भारत दर्शन किया जा सकता है ... aur kahaniyaan hi kahaniyaan miltin hai ..

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  5. बहुत दिनों बाद आपको पढ़ा ।ऐसे चरित्र कफी दिनों तक मस्तिष्क पर छाए रहते है ।और विचारो को गति देते है ।अछि कहानी है ।

    नानीजी को श्रद्धांजलि ।

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  6. well very casual day to day life we see in our daily routine, may be sometime we think about it or remember it for longtime but never do what you did.....thank you to pen it down.

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