डेशबोर्ड पर पड़ा घुँघरू
गाड़ी के शीशे बंद थे, म्यूजिक ऑफ, घर से निकलते ही पहले मोड़ पर घुँघरू की आवाज़, जैसे बगल वाली सीट पर वह बैठी हो और.. उसे लगा शायद उसका वहम है, वह रात को २ बजे घर पहुँचा था और तीन दिन के टूर में बुरी तरह थक चुका था, पर अगले मोड़ पर फिर वही आवाज़, उसने देखा एक चमकीला घुँघरू उसके डेश में पड़ा है. उसने कार सड़क किनारे रोकी और धीरे से उस घुँघरू को उठाकर देखा, ४ दिन पहले वह इसी बगल वाली सीट पर बैठी थी, सफ़ेद सूट में, लाल चुंदरी के कोनों पर यही छोटे घुँघरू बंधे हुए थे. वह दो घंटे और पैंतीस मिनट कैसे बीत गए उसे ज़रा भी पता नहीं. जाते जाते वह एक स्माइल छोड़ गयी.
यह वही स्माइल थी जिस पर वह पहले दिन से फ़िदा था, होने को बहुत कुछ था पर पहचान सिर्फ़ जान-पहचान ही बनकर रह गयी और आज भी वह ऐसे ख्यालों पर काबिज़ है जैसे मुस्कुरा के कह रही हो ‘बाय, अपना ख्याल रखना’, वह सिर्फ़ इतना कहता ‘मिलते हैं’ और वह सिर्फ़ मुस्कुराती. उसे मालूम था आज आखिरी मुलाक़ात है, ऑफिस से बहाना मार के चला आया. स्वाति का पूना के एक नामचीन इंस्टिट्यूट में दाखिला हो गया. कहने को तो सिर्फ़ दो साल कि पढ़ाई है, पर वह जानता है, फिरसे मिलना शायद मुश्किल है.
आज उस घुंघरू की चमक उतर चुकी है, डेश पर रगड़ते हुए कई आडी तिरछी रेखाएं खींच गयी है, सर्विस सेंटर वाले पूछते हैं, आप डेश पर क्या सामान रखते हैं, काफी स्क्रेचेस हो गए हैं. सर्विस सेंटर से गाड़ी निकलते ही वह वालेट में से निकाल कर उसे फिर डेश पर रख देता, तीन साल बाद भी हर मोड़ पर वह उसके साथ है.
बड़ा ही दर्द समेटे हैं आपका यह स्मृति चिन्ह, हर मोड़ पर रुला देता है।
ReplyDeleteस्मृतियों के सहारे बसर होती होती है जिन्दगी
ReplyDeleteआपके ब्लॉग की चर्चा ब्लॉग4वार्ता पर
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मजा आ गया पढ़ कर. बेहतरीन !
ReplyDeleteशुक्रिया !
Deletehmm to wo carwala kaun tha pahle yh btao?wo koi bhi thi.bhoolo aur ghunghru ko utha kr bahar faink do.iski aawaj student life me sangeet aur marride life me shor bn jaati hai jo khud se bahr nikal jiwan me hlchl mcha deti hai.
ReplyDeletebahut se mod aayenge jb aisi hi ghunghru ya kangan waliyan milegi.sahjta se lo aur jahan unhe drop kro wahan unke smariti chinhon ko bhi drop kr do.ha ha ha
ek prawaah aaj bhii tumhari rachna me.poora pdh gai.kintu....ghunghru dashboard pr hi nhi jiwan me bhi skrech maare usse pahle.....sudhr jao bchche.ha ha ha
मनोज जी, कम लिखते हैं, पर बेहतरीन लिखते है...
ReplyDeleteये अंदाज़ बढिया लगा.
आभार
Deleteघुँघरू डैशबोर्ड पर चाहे ना भी हो पर झंकार तो दिल में सदा रहेगी
ReplyDeleteएक दिल को छू जाने वाली बेहतरीन क्या कहूँ संस्मरण या लघुकथा मगर ये लघुकथा कम संस्मरण ज्यादा लग रहा है जो यादो मे आज भी पैबस्त है और बज रहा है मधुर झंकार के साथ और घुंघरू यादो की रहनुमाई कर रहा है।
ReplyDelete:)
ReplyDeleteAshish
मन को झंकृत कराती पोस्ट ....
ReplyDeleteउदास ओर सिर्फ उदास करता पन्ना !
ReplyDelete:)
Deleteस्मृतियों के घुँघरू भी आपने अभूत संभाल कर रखे ..
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट!
उदासी बेहद खूबसूरत होती है |
ReplyDeleteNicely written thought...I'm impressed...!
ReplyDeleteयाद जो भूलाये ना भूले
ReplyDelete👏 👌🏻😊
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