दौड़ पडूँ दोस्तों के साथ !
दोस्तों से हुई मुलाक़ात कुछ यूँ फिर एक अरसे बाद
ऐसा लगा जैसे फिर से दौड़ पडूँ उनके साथ
पहुंचूं फिर घर भीगी हुई बुशर्ट में, पसीने से तर
और माँ डांटे क्यों पीते हो फ्रिज का पानी
ज़ुकाम से बेहाल रहूँ फिर दो दिन,
बावजूद इसके,
फिर से दौड पडूँ दोस्तों के साथ !
- Get link
- X
- Other Apps
वाह...बारिश आते ही बचपन एक बार सभी के दिलों में जवान हों जाता है...सुन्दर रचना...बधाई...
ReplyDeleteसच कहा, दोसेतों के नाम पर क्या भड़भड़ी मच जाती है घर में।
ReplyDelete*दोस्तों
ReplyDeletekaash wo din waapas aate
ReplyDeleteओह, याद आ गया गुजरा जमाना!
ReplyDeleteउफ़ क्या याद दिला दी. ....... दोस्त
ReplyDeleteदोस्ती रहे सलामत!
ReplyDeletedoston ke saath har dagar asaan si lagti hai.. aayiye main bhi daudta hoon aapke hi saath....
ReplyDeletebahut pyaara likha hai aapne...
ReplyDeletehttp://teri-galatfahmi.blogspot.com/
दौड़ो न .मौका मत गंवाना जाने ये दोस्त फिर मिले न मिले.माँ का क्या है बचपन में बनाते थे वैसे ही अब भी बना लेना कोई बहाना.
ReplyDeleteछोटी सी कविता (?????) में सब कह दिया. हा हा हा
aur wo post kahan hai jo likhne ka waada kiya tha apne pooraane doston se ek hii jgah milne ka prograam tha na tumhara.......wo post???