बूट पॉलिश
एडवरटाईज़िंग की दुनिया या फिर कहें एड-वर्ल्ड, यह दुनिया है कुछ और गढ़ने की, सहज और सरल से परे, ब्रांड बनाने की और उसे नयी ऊँचाइयाँ देने की. इस शहर में और शायद पूरे प्रदेश में एड-वर्ल्ड में कोई ऐसा शख्स नहीं जो किशन खुराना को ना जानता हो. किशन खुराना जिस भी कंपनी में रहे अपने काम करने के अंदाज़ और अपनी कामयाबियों से अपनी कंपनी का नाम रोशन करते रहे.
किशन खुराना ने अपनी एडवरटाईज़िंग कंपनी खोली 'मिडास टच'. ब्रांडिंग, पी आर और एडवरटाईज़िंग सारे ही काम एक ही छत के नीचे. ज़माना भी आजकल यही है. कंपनी ने बहुत तेज़ी से तरक्की की. कानपुर जैसे छोटे से शहर से संचालित होती कम्पनी ने देश की कई बड़ी कंपनियों और कॉर्पोरेट हाउस से कोंट्राक्ट कर लिया था. काम खूब था और साथ ही पैसा और शौहरत भी. किशन खुराना का नाम पहले से कहीं अधिक लोकप्रिय हो गया था. देश के कई जाने माने विश्वविद्यालयों और कोलेजों में उन्हें व्याख्यान के लिए बुलाया जाता. मुम्बई में ऐसे ही एक व्याख्यान के बाद उन्हें किसी ने फोन किया.. "सर प्रणाम मैं सुनील .. सुनील शर्मा, आपके अंडर ट्रेनिंग की थी और फिर आपकी सिफारिश से ही ओ एंड एम में दिल्ली में ज्वाइन किया था".. उस दिन शाम को किशन को सुनील अपने घर ले गया, मुम्बई का उपनगर भयंदर. एक ठीक ठाक सी सोसाइटी में दूसरे माले पर छोटा सा फ्लैट.
किशन का एक्सीडेंट हुआ था और लगभग तीन महीने तक बिस्तर पर बीते थे, तब सुनील ही ओफिस और घर के सारे काम काज निबटाया करता था, उन्हें अस्पताल ले जाना और घर के दूसरे छोटे मोटे काम. सुमन ने तो सुनील को रक्षाबंधन के दिन राखी भी बाँधी थी, तब किशन ने मजाक में कहा था 'साले सुनील' और दोनों उस दिन बहुत देर तक हँसते और बात करते रहे. "सर चाय .." किशन की तन्द्रा टूटी. एडवरटाईज़िंग की दुनिया में अक्सर दफ्तरों में कॉफ़ी ही पी और पिलाई जाती पर किशन फिर भी चाय ही पीता. "अरे सुनील तुम्हे याद है .." "कैसे भूल सकता हूँ सर.. आप मेरे टीचर हैं, आप ही ने मुझे एड और मीडिया की बारीकियां से वाकिफ कराया था, वर्ना में तो सिर्फ़ एक ग्रेजुएट था" किशन के सामने १२ साल पहले का समय आ गया. सुनील जो भी काम हाथ में लेता उसे बखूबी अंजाम देता, वह अपने समकक्ष लोगों से ज़्यादा तनख्वाह पाता था और उसके काम से जुड़े मालूमात कमाल थे. किशन सुनील में अपना बिम्ब देखता था. सुनील की शादी हुई ही थी और माता-पिता फतेहपुर में रहते थे. सुनील हमेशा ही महत्वाकांक्षी रहा था. किशन ने उसे अपने संपर्कों के ज़रिये ओ एंड एम जैसी बड़ी कंपनी में जगह दिलवा दी और उसे दिल्ली ऑफिस में पोस्ट किया गया. चेला चीनी हो गया और कुछ ५-६ वर्ष बाद मुम्बई में एक नई कंपनी में अच्छी पोस्ट पर ज्वाइन कर लिया. उसके बाद से ही सुनील से किशन का संपर्क नहीं रहा.
तो आजकल किस कम्पनी में हो
सर अभी ३ साल हुए कंपनी छोड़ चुका हूँ, असल में फेमिली डिसप्यूट के चलते कम्पनी बिक गयी और नए मेनेजमेंट से मेरी नहीं पटी..अभी घर से ही छोटा मोटा एड एजेंसी का कामकाज चला रहा हूँ.
उसके आगे बात नहीं हुई, शायद ज़रूरत भी नहीं थी... उसके घर की हालत और सुनील और उसके परिवार वालों के बुझे चेहरे देखकर ही समझ गया था. उस रात सुनील ने किशन को रोक लिया और होटल से जाकर सारा सामान भी ले आया. दूसरे दिन सुबह ११.३० पर बोरीवली स्टेशन से ट्रेन थी. देर रात तक पुरानी बातें हुई कुछ पुराने मित्र परिचितों की, कुछ सहकर्मियों की. सुनील का चेहरा खिल सा गया था. आखिर २ बजे सुनील की बीवी ने पास बुला कर कहा "क्या इन्हें सोने नहीं देंगे आप"..
'सर, बहुत देर हों गयी, आप आराम करें..'
किशन बुरी तरह थका हुआ था, लेटते ही उसे नींद आ गयी, सुबह जब आँख खुली तो घड़ी देखी ६.५५ .. कुछ अजीब सी आवाज़ सुनाई दी, किशन ने देखा कमरे के बाहर स्टूल पर बैठा सुनील उनके जूते पॉलिश कर रहा था. किशन को यह सख्त नापसंद था के कोई उनके पैर छुए.. वह हमेशा कहा करता था -- आदर मन में होना चाहिये .. किशन सुनील के पास आया, सुनील को शायद आभास भी नहीं हुआ, वह एकाएक किशन को पास देखकर चौंक सा गया. किशन कुछ नहीं बोला .. बस कुछ क्षण दोनों एक दूसरे को देखते रहे, पानी बाँध तोड़ चुका था और सुनील के गालों पर लुढक गया. किशन ने सुनील को सीने से लगा लिया.
सुनील कमरे से जाने को हुआ तभी किशन ने उसे हाथ से रुकने का इशारा किया.
मैंने मुम्बई ऑफिस चालू करने का सोचा है, बड़ी कंपनी तो नहीं है हमारी पर हाँ काम और नाम पहले मिलेगा और फिर पैसा.. बोलो क्या बोलते हो..
सुनील के मुख से शब्द नहीं निकल रहे थे. वोह सिर्फ़ इतना ही कह पाया 'ज़रूर सर'
मुम्बई में वर्ली में 'मिडास टच' का ऑफिस है और सुनील शर्मा 'मिडास टच' के रीजनल वाईज़ प्रेसिडेंट. आज भी जब किशन मुम्बई जाता है तो सुनील के घर पर ही रुकता है और सुबह सुनील, किशन के उठने से पहले उनके जूते पॉलिश करता है.
किशन खुराना ने अपनी एडवरटाईज़िंग कंपनी खोली 'मिडास टच'. ब्रांडिंग, पी आर और एडवरटाईज़िंग सारे ही काम एक ही छत के नीचे. ज़माना भी आजकल यही है. कंपनी ने बहुत तेज़ी से तरक्की की. कानपुर जैसे छोटे से शहर से संचालित होती कम्पनी ने देश की कई बड़ी कंपनियों और कॉर्पोरेट हाउस से कोंट्राक्ट कर लिया था. काम खूब था और साथ ही पैसा और शौहरत भी. किशन खुराना का नाम पहले से कहीं अधिक लोकप्रिय हो गया था. देश के कई जाने माने विश्वविद्यालयों और कोलेजों में उन्हें व्याख्यान के लिए बुलाया जाता. मुम्बई में ऐसे ही एक व्याख्यान के बाद उन्हें किसी ने फोन किया.. "सर प्रणाम मैं सुनील .. सुनील शर्मा, आपके अंडर ट्रेनिंग की थी और फिर आपकी सिफारिश से ही ओ एंड एम में दिल्ली में ज्वाइन किया था".. उस दिन शाम को किशन को सुनील अपने घर ले गया, मुम्बई का उपनगर भयंदर. एक ठीक ठाक सी सोसाइटी में दूसरे माले पर छोटा सा फ्लैट.
किशन का एक्सीडेंट हुआ था और लगभग तीन महीने तक बिस्तर पर बीते थे, तब सुनील ही ओफिस और घर के सारे काम काज निबटाया करता था, उन्हें अस्पताल ले जाना और घर के दूसरे छोटे मोटे काम. सुमन ने तो सुनील को रक्षाबंधन के दिन राखी भी बाँधी थी, तब किशन ने मजाक में कहा था 'साले सुनील' और दोनों उस दिन बहुत देर तक हँसते और बात करते रहे. "सर चाय .." किशन की तन्द्रा टूटी. एडवरटाईज़िंग की दुनिया में अक्सर दफ्तरों में कॉफ़ी ही पी और पिलाई जाती पर किशन फिर भी चाय ही पीता. "अरे सुनील तुम्हे याद है .." "कैसे भूल सकता हूँ सर.. आप मेरे टीचर हैं, आप ही ने मुझे एड और मीडिया की बारीकियां से वाकिफ कराया था, वर्ना में तो सिर्फ़ एक ग्रेजुएट था" किशन के सामने १२ साल पहले का समय आ गया. सुनील जो भी काम हाथ में लेता उसे बखूबी अंजाम देता, वह अपने समकक्ष लोगों से ज़्यादा तनख्वाह पाता था और उसके काम से जुड़े मालूमात कमाल थे. किशन सुनील में अपना बिम्ब देखता था. सुनील की शादी हुई ही थी और माता-पिता फतेहपुर में रहते थे. सुनील हमेशा ही महत्वाकांक्षी रहा था. किशन ने उसे अपने संपर्कों के ज़रिये ओ एंड एम जैसी बड़ी कंपनी में जगह दिलवा दी और उसे दिल्ली ऑफिस में पोस्ट किया गया. चेला चीनी हो गया और कुछ ५-६ वर्ष बाद मुम्बई में एक नई कंपनी में अच्छी पोस्ट पर ज्वाइन कर लिया. उसके बाद से ही सुनील से किशन का संपर्क नहीं रहा.
तो आजकल किस कम्पनी में हो
सर अभी ३ साल हुए कंपनी छोड़ चुका हूँ, असल में फेमिली डिसप्यूट के चलते कम्पनी बिक गयी और नए मेनेजमेंट से मेरी नहीं पटी..अभी घर से ही छोटा मोटा एड एजेंसी का कामकाज चला रहा हूँ.
उसके आगे बात नहीं हुई, शायद ज़रूरत भी नहीं थी... उसके घर की हालत और सुनील और उसके परिवार वालों के बुझे चेहरे देखकर ही समझ गया था. उस रात सुनील ने किशन को रोक लिया और होटल से जाकर सारा सामान भी ले आया. दूसरे दिन सुबह ११.३० पर बोरीवली स्टेशन से ट्रेन थी. देर रात तक पुरानी बातें हुई कुछ पुराने मित्र परिचितों की, कुछ सहकर्मियों की. सुनील का चेहरा खिल सा गया था. आखिर २ बजे सुनील की बीवी ने पास बुला कर कहा "क्या इन्हें सोने नहीं देंगे आप"..
'सर, बहुत देर हों गयी, आप आराम करें..'
किशन बुरी तरह थका हुआ था, लेटते ही उसे नींद आ गयी, सुबह जब आँख खुली तो घड़ी देखी ६.५५ .. कुछ अजीब सी आवाज़ सुनाई दी, किशन ने देखा कमरे के बाहर स्टूल पर बैठा सुनील उनके जूते पॉलिश कर रहा था. किशन को यह सख्त नापसंद था के कोई उनके पैर छुए.. वह हमेशा कहा करता था -- आदर मन में होना चाहिये .. किशन सुनील के पास आया, सुनील को शायद आभास भी नहीं हुआ, वह एकाएक किशन को पास देखकर चौंक सा गया. किशन कुछ नहीं बोला .. बस कुछ क्षण दोनों एक दूसरे को देखते रहे, पानी बाँध तोड़ चुका था और सुनील के गालों पर लुढक गया. किशन ने सुनील को सीने से लगा लिया.
सुनील कमरे से जाने को हुआ तभी किशन ने उसे हाथ से रुकने का इशारा किया.
मैंने मुम्बई ऑफिस चालू करने का सोचा है, बड़ी कंपनी तो नहीं है हमारी पर हाँ काम और नाम पहले मिलेगा और फिर पैसा.. बोलो क्या बोलते हो..
सुनील के मुख से शब्द नहीं निकल रहे थे. वोह सिर्फ़ इतना ही कह पाया 'ज़रूर सर'
मुम्बई में वर्ली में 'मिडास टच' का ऑफिस है और सुनील शर्मा 'मिडास टच' के रीजनल वाईज़ प्रेसिडेंट. आज भी जब किशन मुम्बई जाता है तो सुनील के घर पर ही रुकता है और सुबह सुनील, किशन के उठने से पहले उनके जूते पॉलिश करता है.
जय हो, बूट पोलिश की भी महिमा होती है. छोटी से कहानी में सही अन्त्रद्व्न्द पेश किया है आपने
ReplyDeleteसुन्दर और प्रेरक। हमारी कृतज्ञता सही जगह स्थापित रहे।
ReplyDeleteबहुत सुंदर कहानी..
ReplyDeleteसुंदर कहानी ....प्रेरणादायी कथ्य
ReplyDeleteLike it
ReplyDeleteअरे! ये तो मैं पढ़ चुकी हूँ,व्यूज़ नही दे पाई थी. बॉस के बूट्स को पोलिश करने का इनाम था ये नया ऑफिस और नया जॉब या???????
ReplyDeleteअपनों से बड़ों के प्रति सम्मान का तरीका,सेवाभाव और उसके प्रतिफल के स्वरुप मिला ये प्रतिदान ,कुछ भी समझ ले.पर ऐसी हई श्रद्धा,प्रेम मेरे प्रेम में रहा है उन सबके लिए जिन्हें मैं प्यार करती हूँ .अंतर सिर्फ इतना कि मैंने प्रतिफल में कुछ नही चाह नायक की तरह मुझे भी मिलता गया.पोस्ट या ऑफिस नही......पे और सम्मान मिला.और ये ही मेरी पूंजी है. बात एक हई है.नेकी का बदला नेकी मिलती है.नेक मिलती है.
अच्छी कहानी है.
छोटी से हृदयस्पर्शी कहानी में जीवन के कई रूप एक साथ देखने को मिले।
ReplyDeleteVery nice story.
ReplyDeleteVery Nice story....very touchy infact...Good Job
ReplyDeleteमन भावुक हो गया..काश आज के बच्चे कुछ सीख ले पाएँ...
ReplyDeleteबेहतरीन...प्रेरक.
ReplyDeleteगज़ब लिखते हो आप।*****
ReplyDeleteHeartwarming ! You should write more often Manoj .
ReplyDelete@kavita saharia
ReplyDeleteyes i am trying to ..
thanks!!