A - क्लास आदमी
आनन्द के सबसे प्यारे दोस्त समीर की शादी थी । शादी के बाद आनन्द वापिस अपने घर जयपुर लौट रहा था। अहमदाबाद में तीन दिन रूका था। चिंतन भी समीर की तरह आनन्द का अभिन्न मित्र था। आज सुबह ६ बजे मोबाईल घनघनाया, चिंतन ने शायद अलार्म सेट किया होगा। लेकिन आनन्द छः बजे की जगह साढे़ पांच बजे उठ गया था। रात को सोते वक्त शायद एक बज चुका था, फिर भी दोनों की बातें पूरी नहीं हुई थी। आनन्द जो ८ बजे से पहले बिस्तर से नही निकलता था वह अब ६ बजे नहा धोकर आ गया था और सामान पैक कर रहा था। दिल्ली मेल अहमदाबाद से नौ पचास पर निकलने वाली थी। आनन्द समय से पहले स्टेशन पहुंचकर अपनी सीट रिजर्व करवाना चाहता था।
चिंतन की माँ ने आवाज दी, चिंतन और आनन्द नीचे गए और चाय पीने के बाद चल दिए स्टेशन की ओर। स्टेशन पहुंचने पर टिकट लेने के बाद रिज़र्वेशन मिल जाएगा यह सोचकर आनन्द ने जर्नी का टिकट ले लिया। आनन्द अब असिस्टेंट स्टेशन मास्टर और हेड टी.सी. से मिलने गया पर वहाँ पर भी बात बनते नजर नहीं आ रही थी। चिंतन भी परेशान था, शायद आज रिज़र्वेशन नहीं मिल पाएगा । प्लेटफॉर्म पर चिंतन को एक कुली मिला जो सौ रूपये एक व्यक्ति के बैठने की जगह के लिए माँग रहा था। आनन्द के पास और कोई चारा नहीं था सिवाय जनरल डिब्बे में बैठने के । आज वह शायद पहली बार जरनल कोच मे बैठेगा । ए.सी. मे यात्रा करने वाले आनन्द को गर्मी के दिन में तेरह घंटे का सफर काफी मुश्किल लग रहा था।
आनन्द खिड़की के पास सिंगल सीट पर बैठ गया। इधर दो मैगनीज हाथ में लेकर चिंतन जनरल डिब्बे मे चढ़ा, घड़ी नौ बजा रही थी । चिंतन कुछ बोला नही पर उसे भी अच्छा नहीं लग रहा था कि आनन्द जनरल कोच मे यात्रा करे। समीर की शादी की बात चल पड़ी । इंजन की सीटी की आवाज आई। ''बॉय, टेक केयर आनन्द'' कहकर चिंतन गाडी से उतरा। आनन्द अब अकेला था। समीर, चिंतन, अनिल, प्रवीण सबके बारे मे सोचने लगा। सिर्फ एक साल आनन्द अहमदाबाद में रहा था, क्योंकि उसके पापा का ट्रांसफर जयपुर से अहमदाबाद हो गया था। एक बडी कंपनी में अधिकारी थे आनन्द के पापा।
कक्षा सात में पढता था तब आनन्द । चिंतन, समीर, अनिल, प्रवीण कुछ ही समय में सब उसके अच्छे दोस्त बन गये थे। एक ही साल बाद अहमदाबाद से वापस ट्रांसफर करवा लिया था आनन्द के पापा ने। आनन्द का परिवार जयपुर वापस आ गया। समीर और आनन्द काफी समय तक एक दूसरे को पत्र लिखते रहे और फिर एक दुसरे को ई-मेल करते रहे। एक दिन आनन्द को समीर का ई-मेल मिला कि उसकी शादी है। तीन अप्रेल को आनन्द को ई-मेल मिला था और पांच मई की शादी थी । आनन्द के एम.एस.सी के पेपर २० अप्रैल को समाप्त हो रहे थे और वह जाने को तैयार था।
इंजन आखिरी सीटी दे रहा था। गाडी अब धीरे धीरे रैंगने लगी, तभी हड़बडाता हुआ काले जैकेट और काली जीन्स में एक व्यक्ति चढा, उम्र यही तीस-बत्तीस वर्ष, कद पांच फीट और पैरों मे लेटेस्ट फैशन के चप्पल। ऑब्जर्व करना आनन्द की आदत बन गई थी। साईंस पढते-पढते जाने कब ऑर्ब्जव करने की आदत बन गई थी, वह स्वयं नहीं जानता था। एक दम सामने आकर बैठा था वह व्यक्ति। ''जल्दबाजी में टिकट नहीं मिला इसलिए जनरल डिब्बे में आना पड़ा अपन को बाकी रिज़र्वेशन वाले डिब्बे मे ही टेवल करता हूँ, मुरादाबाद जाना है पहले दिल्ली और फिर वहां से आगे मुरादाबाद, आप किधर जाएंगें।'' बिना पूछे ही सब कुछ बता दिया था उसने। आनन्द ने उत्तर दिया ''जयपुर''। ''अपन जैसा ए-कलास आदमी नीचे तो बेटेगा नही, इसलिए उस कुली को दस की पत्ती दी अपना जानकर है वर्ना बीस से नीचे बात नहीं। हर बार उसी से सीट लेता हूँ। तुमने कितने दिए ?'' ''सौ'' आनन्द ने धीरे से कहा। ''अरे तुमसे सौ ले लिये स्साले ने'' आनन्द को हालॉकि कोई पछतावा नही था, दस की जगह सौ देने में। आनन्द को एक साथी मिल गया था जो बातूनी था। आनन्द के लिए आर्ब्ज व करना आदत थी, जिसमें सुनना भी शामिल था। शायद इसलिए आनन्द के लिए कोई मुद्गिकल नहीं था झेलना उस ए-क्लास आदमी को।
गाड़ी कलोल स्टेशन छोड़ चुकी थी। ए-क्लास आदमी अपनी पिछली यात्रा अहमदाबाद से दिल्ली के बारे में बता रहा था आनन्द को। आनन्द के कानों में उसकी बातें पड़ जरूर रही थी पर उसका दिमाग वहीं समीर की शादी में उलझा पड़ा था। आनन्द ने तीन मई का सेकैण्ड एसी का टिकट लिया था अहमदाबाद का। रात को आनन्द ने टैक्सी बुक करा ली थी, सुबह तीन बजे उठकर तैयार हुआ, ठीक चार बजे टैक्सी घर के बाहर आ गयी थी। स्टेशन पर पहुंचकर जैसे ही आनन्द ने डिस्पले देखा, ट्रेन एक घंटा लेट..... वह भारी कदमों से प्लेटफॉर्म पर पहुंचा। आनन्द ने चाय पी, बिस्किट खाए और फिर चिप्स का पैकेट लिया, उसे लगा अगर ट्रेन ऐसे ही लेट होती रही तो वह सारे दिन का खाना पीना यहीं कर लेगा। तभी घड़ी ने सात बजाए और इधर प्लेटफॉर्म पर आ पहुँची। वह इत्मीनान से अपने डिब्बे में पहुँचा और टी.टी.ई. के जाने के बाद वह लेट गया। आनन्द शाम ६ बजे अहमदाबाद पहुँचा।
अहमदाबाद स्टेशन पर समीर खुद आनन्द को लेने पहुंचा, दोनों ने एक दूसरे को सिर्फ फोटो में देखा था। आज चौदह बरस बाद दोनों गले मिले तो जाने चौदह साल का प्यार एक साथ ही उमड़ पडा था। समीर और आनन्द दोनो साथ बोल रहे थे और हँस रहे थे ।
आनन्द की तन्द्रा भंग हुई जब पालनपुर स्टेशन आया। ए-क्लास आदमी चाय ले आया था। आनन्द के लाख मना करने के बावजूद वह नहीं माना और आनन्द ने चाय पी। ए-क्लास आदमी रेलगाडी और रेल्वे के बारे में बात कर रहा था। आनन्द का मन फिर अहमदाबाद पहुँच गया । घर पहुँचते ही समीर ने सब लोगों से मिलवाया था। समीर की माँ को हालाँकि हिन्दी नही आती थी पर आनन्द को गुजराती समझने मे तकलीफ नही हुई । पैर छूते ही समीर की माँ बोली ''अच्छा हुआ आनन्द तू आ गया, समीर तो कब से तेरा इंतजार कर रहा था''। ''गाडी लेट थी ना आँटी, गाडी ने बहुत इंतजार करवाया आपको अहमदाबाद में और मुझको जयपुर में'' आनन्द की बात सुनकर सब हंस पड़े । समीर की बहन नंदिता ने हांलाकि आनन्द से बात नहीं की, पर समीर के पापा ने जरूर गुजराती मिश्रित हिन्दी में आनन्द से बातचीत की थी। आनन्द का मन आज बहुत प्रसन्न था।
ए-क्लास आदमी शायद कुछ बोल रहा था पर आनन्द का ध्यान उस की तरफ नही था। तभी कोई स्टेशन आया और ट्रेन रूकी । गाड़ी राजस्थान की सीमा मे पहुँची थी। स्टेशन था आबू रोड । सफेद कपड़ों में नर नारी बहुतायत में स्टेशन पर उपस्थित थे। बह्म्रकुमारी मुखयालय माउंट आबू स्थित था। वहीं से यह लोग आबू रोड स्टेशन पहुंचे थे। ऑब्जर्व करने की आदत पड चुकी थी आनन्द को।
आनन्द को याद आया किस तरह वह समीर की शादी में सफेद साड़ी पहने एक लड़की की तरफ आकृष्ट हुआ था । शायद कोई नजदीकी रिश्तेदार थी समीर की। वह सिर्फ उस लड़की के सौन्दर्य को देखकर आकर्षित हुआ था और वह सब कुछ क्षणिक था। आनन्द का मोबाईल बजा ''कहाँ है बेटा'' मम्मी की आवाज सुनकर आनन्द को अच्छा लगा। ''मम्मी अभी गाडी आबू रोड है'' और फिर नेटवर्क प्राब्लम के कारण फोन कट गया। ए-क्लास आदमी बोला ''अपन के पास भी मोबईल है लेकिन वह सिर्फ दिल्ली मे काम करता है, बाहर नहीं करता।'' यह कहते हुए उसने जेब से बीडी निकाली और कश लगाने लगा । एक लड़का हाथ में कुछ गुटके के पाउच और बीडी सिगरेट लेकर कम्पार्टमेंट में चढा था तभी शायद ए-क्लास आदमी ने उससे बीडी खरीदी थी। आनन्द फिर शादी में पहुँच गया। समीर की शादी की कार आनन्द ने खुद सजाई थी। मित्तल जो समीर के साथ काम करता था और समीर का अभिन्न मित्र भी था। आनन्द और मित्तल रात को ग्याहरा बजे लगे थे कार सजाने मे और जब वह अपना काम कर चुके तो रात के डेढ बज रहे थे। बारात सुबह तीन बजे रवाना होनी थी। आनन्द ऊपर कमरे मे गया पहले नहाया, फिर शेव बनाई और थोडी देर सुस्ताने का मन बनाकर सोफे पर बैठा ओर पैर सामने की टेबल पर टिका दिए। तीन बजे बारात रवानगी के लिए बुलावा आ गया। बारात सुबह ८ बजे राजकोट पहुंची थे। आनन्द, समीर, चिंतन और उनके कुछ और दोस्त स्कोर्पियो से बारात की दोनो बसों से आधा घंटा पहले ही पहुंच चुके थे। फेरे सुबह दस बजे समाप्त हुए थे, खाना खाने के बाद साढ़े चार बजे बारात वापस रवाना हो गई क्योकि दूसरे ही दिन समीर के साले की शादी थी।
रात को दस बजे वह वापस अहमदाबाद पहुंच गए थे आनन्द के दिमाग मे शादी की बातें रह- रहकर आ रंही थी। कुछ घंटो तक ऐसा ही चलता रहा। अंघेरा घिर आया था। और वह अब बैठे बैठे थक चुका था इसलिए उसने वार्तालाप शुरू किया ए-क्लास आदमी से । वह कुछ बोल रहा था। आनन्द का मन विचलित था। तभी अजमेर स्टेशन आ गया। आनन्द ने मोबाईल निकाला और घर फोन मिलाया ''हेलो सीमा कैसी है मैं अजमेर हूँ, अभी ढाई से तीन घंटे लगेंगें'' सीमा आनन्द की बहन थी, सीमा से बड़ी तनु थी। सीमा पर आनन्द और तनु का विशेष स्नेह था। ट्रेन अजमेर पहुँची। डिब्बे मे अब फिर हलचल होने लगी। काफी लोग अजमेर से ट्रेन मे चढ़े थे। एक सज्जन उम्र लगभग पैंतिस वर्ष अपनी पत्नी व बेटी के साथ डिब्बे मे चढे, आनन्द की पास वाली सीट तक आए । एक महिला ने सज्जन की पत्नी को बैठने के लिए जगह बनाई। महिला व उसकी बेटी दोनों वहां बैठ गए । लेकिन सज्जन अभी भी खडे थे। तभी ए-क्लास आदमी खडा हुआ और उन सज्जन से बोला ''आप बेठो भाईसाहब'' ''नही-नही आप बैठे रहें'' सज्जन बोले, ''अभी सुबह से बेठा हूँ बेठे-बेठे थक गया।'' ए-क्लास आदमी बोला।
ए-क्लास आदमी ने सज्जन को जगह दी, तभी आनन्द ने मन ही मन सोचा-वास्तव में वह आदमी ए-क्लास ही है । जाने कितने लोग ट्रेन और बस में सफर करते हैं, पर कोई किसी थके मांदे को बैठने के लिए जगह नहीं देता। कहने को सभी सभ्य कहलाते है 'एलीट जेन्ट्री' लेकिन मानवता सभी को मरी पड़ी है। एक आदमी जो स्टेशन पर सहयात्री को चाय पिलाता है, दूसरे को बैठने के लिए जगह देता है, अपने बारे मे बताता है, सामने वाले के बारे में जाने बिना। नितांत सरल हृदय, वास्तव मे वही है ए-क्लास आदमी।
अमानीशाह नाला आ चुका था, ट्रेन जयपुर स्टेशन पहुंचने वाली थी। स्टेशन पर उतरने के बाद आनन्द ने घर फोन मिलाया और कहा ''टैक्सी लेकर पहुँचता हूँ'' मम्मी ने कहा ''ठीक है बेटा'' और आनन्द स्टेद्गान से बाहर निकलता है, ए-क्लास आदमी के बारे मे सोचता हुआ। [] []
फिलहाल ए-क्लास आदमी का प्रभाव पड़ता ही है आनंद पर !
ReplyDeleteऐसा लगा कि मुझे भी आपने ट्रेन में बैठा दिया , यात्रा थोड़ी लम्बी रही एक ब्लोगर के लिए |
पत्रिका की कहानी को ब्लॉग पर डालते समय उसे इडित करके ब्लॉग के अनुकूल बनाना बेहतर होता है |
अच्छी कहानी ! सहज प्रवाह ! मैं एक सलाह ही देना चाह रहा हूँ कि मंटो की कहानियों को पढ़िए | आपकी कहानियों के शिल्प में अपेक्षित कसाव आयेगा ! आभार !
दुनिया में खरी - खोटी सुनाने का रिवाज़ है किन्तु मनोज जी ये अमरेन्द्र भाई सिर्फ खरी खरी ही सुनाते हैं.
ReplyDeleteमैं इनके सुझाव से सहमत हूँ. आपकी इस कहानी को मैं बहुत पहले ही पढ़ चुका था.
कहानी का शिल्प और कथ्य दोनों साध्य है और साधे जाते रहे हैं.
बड़े बड़े कहानीकारों ने अति सामान्य स्तर की कहानियां लिखी है.
हम भी लिखेंगे मगर कोशिश बनी रहे कि एक दिन पढने वाला आह भर कर उठे.
शुभकामनाएं.
न जाने क्यू मुझे सब garble दिख रहा है.. :(
ReplyDelete@ अमरेन्द्र जी
ReplyDeleteकहानी लिखे हुए एक अरसा हो गया, शायद २००३ की लखी हुई है. एडिटिंग की आवश्यकता है, भाषा पर मेरी पकड़ नहीं है और वाक्य विनियास भी त्रुटिपूर्ण है. लेकिन फिर भी आपने कहानी को अच्छा कहा - बहुत बहुत धन्यवाद.
आप जैसे मित्रों की वजह से ही यहाँ पर हूँ, वर्ना ब्लॉग्गिंग कंटिन्यू नहीं रख पाता.
मनोज खत्री
This comment has been removed by the author.
ReplyDelete@ किशोरजी
ReplyDeleteकहानी बेहद साधारण, यह उन दिनों में लिखी हुई जब अंग्रेजी का ज्ञान चरम पर था और हिंदी की मात्राएँ सुधरवाने के लिए ५ दिन इंतज़ार करना पड़ा था. हिन्दी पढता रहा तो भाषा में सुधार आया.
इस कहानी को नए ढंग से पेश करूँगा. इस कहानी से बेहद लगाव है, शायद इसलिए की यह मेरी पहली रचना थी जो प्रिंट हुई.
आपकी शुभकामनाओं के लिए शुक्रिया.
रिगार्ड्स
मनोज खत्री
@ पंकज
ReplyDeleteमैं आपका मन्तव्य नहीं समझ पा रहा हूँ.
मनोज,
ReplyDeleteशायद आपने हिन्दी लिखने के लिये यूनीकोड की जगह कोई और फ़ान्ट का प्रयोग किया है जिसे ब्राऊजर पहचान नही पा रहा है और बडे अजीब अजीब अक्षर दिखा रहा है। मुझे ये कहानी कुछ इस फ़ार्मेट मे दिख रही है:-
"vkuUn ds lcls I;kjs nksLr lehj dh 'kknh Fkh A 'kknhs ds ckn vkuUn okfil vius ?kj t;iqj ykSV jgk FkkA vgenkckn esa rhu fnu :dk FkkA fparu Hkh lehj dh rjg vkuUn dk vfHkUu fe= FkkA vkt lqcg 6 cts eksckbZy ?ku?kuk;k] fparu us 'kk;n vykeZ lsV fd;k gksxkA ysfdu vkuUn N% cts dh txg lk"
@ पंकज
ReplyDeleteकहानी को यूनीकोड में परिवर्तित कर दिया है. आशा है आपको पसंद आएगी.
आभार
मनोज खत्री
मनोज जी,आपकी कहानी पढ़कर अच्छा लगा...कभी कभी पूर्वधारणाएं एकाएक बदल जाती हैं....
ReplyDeleteलिखते रहिएगा....
चैन सिंह जी, आप ब्लॉग पर आये और कहानी पर टिप्पणी दी, बहुत शुक्रिया, आप जैसे मित्रों के चलते ही ब्लॉगिंग में थोडा बहुत एक्टिव हूँ वर्ना कब का जा चुका होता..
ReplyDeleteआभार
मनोज खत्री
अच्छी लगी आपकी कहानी मनोज जी.
ReplyDeleteशिल्प का ज्यादा ज्ञान नहीं है, पर किशोर जी कहते हैं तो ठीक ही होगा, लिखते रहे.
शुभकामनाएं
@ Avinash Chandra
ReplyDeleteप्रशंसा के लिए धन्यवाद. सीखने और खुद को बेहतर बनाने के इच्छा के चलते ब्लॉग लिखना शुरू किया. आप लोग हैं तो पूर्ण पथ की यात्रा सुखद रहेगी :)
मनोज खत्री
मनोज जी अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आना अच्छी लगी कहानी ..बाकी ब्लॉग पढना अभी शेष है जल्द ही पढूंगी ..हिंदी तो आपको अच्छी आती है .शुक्रिया
ReplyDeleteAchhi lagi...
ReplyDelete@ रंजना जी,
ReplyDeleteआप ब्लॉग पर आये और टिप्पणी दी, बहुत धन्यवाद. आगे भी कृपा बनाये रखियेगा.
आभार
मनोज खत्री
@ ashish
ReplyDeletebahut dhanyavad... aate raheiyega..
पता नहीं क्यूँ...?
ReplyDeleteपर ये आपके आनंद बाबू हमें अपने जैसे से लगे...
ऑब्जर्व करना और खो जाना..
ReplyDelete@ manu
ReplyDeleteआपका ब्लॉग पर स्वागत है..अच्छा लगा आप आये
आनन्द आपको अपना सा लगा.. इसका मतलब आनन्द सफल रहा..
manuji इस धरा पर कई मनुष्य ऐसे हैं जिनमे समानताएं हैं और उनका व्यवहार और परिस्थतियां भी शायद एक सी हों. शायद यही कारण है की ज्योतिष विज्ञान सब मनुष्यों को सिर्फ १२ राशियों में रखता है.
ब्लॉग पर फिर पधारें.
धन्यवाद.
मनोज खत्री