मसल्स
आनंद और कीर्ति की शादी एक arranged marriage थी और आनंद शादी के बाद कीर्ति को अपने कर्म स्थली बेंगलुरु ले आया. 1 BHK फ्लैट में दोनों खुशहाल ज़िन्दगी काट रहे थे. आनंद B .Tech कर अच्छी कंपनी में लग गया था. कीर्ति MA Psychology थी और अपने ग्रहस्थ जीवन में खुश थी.
कुछ दिनों से कीर्ति observe कर रही थी की किशनी जो की उनके यहाँ काम करती थी, काफी दिनों से आनंद को किचन से देखती थी. किशनी की उम्र २४-२५ थी और दो बच्चों की माँ फिर भी कीर्ति उसका व्यवहार समझ नहीं पा रही थी। आनंद की आदत थी, नहाने के बाद वह अपना रूमाल धोकर बालकोनी में सुखाने के लिए डालने आता था. मिडल क्लास का लड़का आनंद बढ़िया detergent से वाशिंग मशीन में धुले रूमाल को भी पसंद नहीं करता था... और खुद अपना रूमाल धोना उसका नियम था. कीर्ति को शुरू में तो यह आदत अच्छी नहीं लगी लेकिन जब उसने अपनी सास से कहा तो सासू माँ ने समझाया - आनंद के पापा भी मेरे हाथ से धुले रूमाल को इस्तेमाल नहीं करते और अभी तक अपना रूमाल खुद धोते हैं. यह सुनने के बाद ही कीर्ति आश्वस्त हुई. किचन की खिड़की बालकनी में खुलती थी. किशनी बर्तन साफ़ करते हुए खिड़की से आनंद को निहारती थी. आनंद यूनिवर्सिटी में बोक्सिंग करता था और उसकी मसल्स किसी athelete से कम नहीं थी. बनियान पहने, तौलिया बांधे जब वह बालकनी में आता तो सचमुच कीर्ति को ऐसा लगता मानो जाकर लिपट जाए. .
कीर्ति को कुछ समझ नहीं आ रहा था. कभी सोचती की किशनी को काम से हटा दे पर वह काम बहुत सलीके से करती थी और कोई ठोस कारण दीखता नही था जिसके लिए वह उसे काम से हटा दे. बड़े शहर में हिंदी समझने वाली और अच्छा काम करने वाली बाई मिलना मुश्किल था.
एक दिन दोपहर में कीर्ति ने हिम्मत जुटाकर किशनी को टटोला, कहीं वह अपने पति से झगडा करके अलग तो नहीं रह रही या फिर कुछ और, लेकिन उसे यह सुनकर ताज्जुब हुआ की किशनी अपनी शादीशुदा ज़िन्दगी से खुश है.
कीर्ति से रहा नहीं गया और एक दिन आनंद के ऑफिस जाने के बाद किशनी से दो-टूक शब्दों में पूछा- तू रसोई में से इनको क्या देखती रहती है, बता तो ... किशनी ने बहुत दुनिया देखी थी वह समझ गयी मेमसाब क्या समझ रही है ... किशनी अपनी बेबसी पर रोने लगी.. कीर्ति को कुछ समझ नहीं आया, सहसा उसे लगा मनो बहुत गलत कह गयी हो.. कीर्ति कहने लगी - अब तू रो क्यों रही है? किशनी कुछ रूककर बोली - मेमसाब, वोह वोह .....
क्या वोह वोह
वोह साहब की गंजी है न.... वोह मेरे मरद की याद आ गयी
क्या बोल रही है किशनी
मेमसाब आप ऐय्सा वैयेसा कुछ समजना नई.... वोह मेरे मरद की गंजी फट गयी है ..
अबके पगार मिलेगी तोह में सोचती है की वैसे गंजी..........
कुछ दिनों से कीर्ति observe कर रही थी की किशनी जो की उनके यहाँ काम करती थी, काफी दिनों से आनंद को किचन से देखती थी. किशनी की उम्र २४-२५ थी और दो बच्चों की माँ फिर भी कीर्ति उसका व्यवहार समझ नहीं पा रही थी। आनंद की आदत थी, नहाने के बाद वह अपना रूमाल धोकर बालकोनी में सुखाने के लिए डालने आता था. मिडल क्लास का लड़का आनंद बढ़िया detergent से वाशिंग मशीन में धुले रूमाल को भी पसंद नहीं करता था... और खुद अपना रूमाल धोना उसका नियम था. कीर्ति को शुरू में तो यह आदत अच्छी नहीं लगी लेकिन जब उसने अपनी सास से कहा तो सासू माँ ने समझाया - आनंद के पापा भी मेरे हाथ से धुले रूमाल को इस्तेमाल नहीं करते और अभी तक अपना रूमाल खुद धोते हैं. यह सुनने के बाद ही कीर्ति आश्वस्त हुई. किचन की खिड़की बालकनी में खुलती थी. किशनी बर्तन साफ़ करते हुए खिड़की से आनंद को निहारती थी. आनंद यूनिवर्सिटी में बोक्सिंग करता था और उसकी मसल्स किसी athelete से कम नहीं थी. बनियान पहने, तौलिया बांधे जब वह बालकनी में आता तो सचमुच कीर्ति को ऐसा लगता मानो जाकर लिपट जाए. .
कीर्ति को कुछ समझ नहीं आ रहा था. कभी सोचती की किशनी को काम से हटा दे पर वह काम बहुत सलीके से करती थी और कोई ठोस कारण दीखता नही था जिसके लिए वह उसे काम से हटा दे. बड़े शहर में हिंदी समझने वाली और अच्छा काम करने वाली बाई मिलना मुश्किल था.
एक दिन दोपहर में कीर्ति ने हिम्मत जुटाकर किशनी को टटोला, कहीं वह अपने पति से झगडा करके अलग तो नहीं रह रही या फिर कुछ और, लेकिन उसे यह सुनकर ताज्जुब हुआ की किशनी अपनी शादीशुदा ज़िन्दगी से खुश है.
कीर्ति से रहा नहीं गया और एक दिन आनंद के ऑफिस जाने के बाद किशनी से दो-टूक शब्दों में पूछा- तू रसोई में से इनको क्या देखती रहती है, बता तो ... किशनी ने बहुत दुनिया देखी थी वह समझ गयी मेमसाब क्या समझ रही है ... किशनी अपनी बेबसी पर रोने लगी.. कीर्ति को कुछ समझ नहीं आया, सहसा उसे लगा मनो बहुत गलत कह गयी हो.. कीर्ति कहने लगी - अब तू रो क्यों रही है? किशनी कुछ रूककर बोली - मेमसाब, वोह वोह .....
क्या वोह वोह
वोह साहब की गंजी है न.... वोह मेरे मरद की याद आ गयी
क्या बोल रही है किशनी
मेमसाब आप ऐय्सा वैयेसा कुछ समजना नई.... वोह मेरे मरद की गंजी फट गयी है ..
अबके पगार मिलेगी तोह में सोचती है की वैसे गंजी..........
तो कहानी के आखिर मे आते आते रीडर को ही चरित्रहीन बना दिया आपने.. अच्छी लगी मुझे ये कहानी बस थोडा अटपटा लगा सिर्फ़ एक गन्जी के लिये किशनी का रोज़ आनंद को ताकना...
ReplyDeleteतो आप कहानिया भी लिखते है.. बढिया है साहब..
अरे आपको पता नहीं आनंद की गंजी adidas की थी...... फिर किशनी क्यों न देखेगी उस गंजी को ..
ReplyDeleteकहानी लिखने का शौक़ बहुत पुराना है .. इस बीमारी का infection बचपन में ही हो गया था.. अभी कुछ महीने से यह बीमारी relapse हो गयी.... और उसके ज़िम्मेदार आप हैं.. भई आप ने ही तो हमें ब्लॉगर बनाया है...
धन्यवाद
मनोज खत्री
मनोज जी बहुत बढ़िया लिखा है
ReplyDeleteज़िन्दगी की समझ ऐसे ही किन्हीं अनचीन्हे ख़यालों में छुपी रहती है
और उसकी आदत भी है कि वह हमें चौंकाने से कभी बाज़ नहीं आती
बनियान के जरिये आपने बहुत कुछ कह दिया है. बधाई
आदरणीय किशोरजी,
ReplyDeleteप्रशंशा के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, मैंने तो कॉपी चेक करने के लिए भेजी थी यह सोचकर की देखें कितनी लाल होकर आती है, यहाँ तो v . good मिल गया. इतना अच्छा भी नहीं लिखता हूँ, अभी बहुत सीखना है. guide कीजियेगा
धन्यवाद
मनोज खत्री
achhi lghukatha .
ReplyDeleteaap likhte rahe
हौसलाफजाई के लिए शुक्रिया. भाषा में बहुत गलतियाँ है. आप बड़ों की सोहबत में सुधर जाएँगी, ऐसी उम्मीद है.
ReplyDeleteरिगार्डस्
मनोज खत्री
arranged marriage के लिए 'तयशुदा शादी' भी चल सकता है | बरकत में ( arr .....ma ....) भी लिख सकते हैं ! अच्छा लिखते हैं आप | बाकी सीखना तो जीवनभर चलता है | हम सब कोई पूर्ण नहीं बस पूर्ण-पथ के सहयात्री से हैं ! आभार !
ReplyDelete@ अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी
ReplyDeleteमाफ़ी चाहता हूँ, इधर कुछ उलझनों के चलते ब्लॉग पर नहीं आ पाया.
प्रशंसा के लिए धन्यवाद. सीखने और खुद को बेहतर बनाने के इच्छा के चलते ब्लॉग लिखना शुरू किया. आप लोग हैं तो पूर्ण पथ की यात्रा सुखद रहेगी :)
मनोज खत्री
करीम चा हो या ए क्लास आदमी सारी रचनाये पाठकों को बांधे रखती है...नदी की धार सी पल पल रुख बदलती है..पर शांत और फ्लो में चलती रहती है..
ReplyDelete@dimple
ReplyDeleteधन्यवाद.