एमबीए / इश्क़ - भाग 1 - सर्दियाँ की धूप


ये सर्दियों जब आती हैं ना, तुम थोड़ी सी और खूबसूरत लगने लगती हो, थोड़ी नहीं, कुछ ज़्यादा ही खूबसूरत...

ये जो हाई कालर कोट और खुले बाल, मुझे निहारती तुम्हारी पानीदार आंखें, एक हल्की मुस्कान, कानों में एयर पॉड्स.... 

हसीन, मासूम दिलकश सब एक साथ लगती हो...

काश के तुम यूहीं मुस्काती रहो और मैं देखता रहूं, तुम कहती रहो और मैं सुनता रहूं... 


आकाश, ये तुमने मेरे लिए लिखा है, है न... 

हाँ श्रुति, तुम बहुत संदर लग रही हो आज. 

थैंक्स आकाश, बट ये बताओ फ़ेट्‌ की क्या तैयारी है, तुमने कीओस्क वालों से बात की... 

नहीं यार, अपने इंस्टिट्यूट के आस पास कोई ढंग के फ़ूड कीओस्क है कहाँ... 

आकाश, वो  शॉपिंग काम्प्लेक्स है न वहां हैं कुछ.... एक है न... क्या नाम है उसका, बहुत अच्छी कॉफ़ी है वहां की... तुम कोशिश तो करो.... घरवालों ने एमबीए की फ़ीस भर दी तुम्हारी, ये इवेंट्स हमें मौका दे रहे हैं कुछ नया सीखने का, हमारे लिए लर्निंग ही है।  सीखो कुछ, आगे काम ही आएगा...

इंस्टिट्यूट की बिल्डिंग के बहार एक छोटा लॉन है , उसमें कुछ बेंच लगे हुए हैं, स्टूडेंट्स और टीचर्स का सर्दियों में फेवरेट... लंच करते हुए, कुछ गपियाते ...हंसी ठठा करते हुए धूप का आनंद ... इसी लॉन में एक बेंच पर आकाश और श्रुति बैठे हुए थे ...आकाश ने कंधे उचकाते हुए सर एक तरफ झुकाकर आँखे मिचमिचाते हुए कहा ... यार अकेले जाने का मन नहीं करता श्रुति ...

श्रुति ने आँखें बड़ी करते हुए लगभग डांटते हुए कहा - आकाश यार तुम मार्केटिंग ऑप्ट करोगे और लोगों से मिलना उनसे इंटरैक्ट करना तुम्हारे लिए बहुत ज़रूरी है ... मैं चलती हूँ साथ ... चलो ...

आकाश बेंच से उठकर बोला  चल श्रुति ... तू साथ है तो कहीं भी चलेंगे ...

श्रुति को एकाएक कुछ समझ नहीं आया, वो अपना बैग सँभालते हुए हुए बोली...रुको न आकाश सामान तो लेलूँ,,,

पार्किंग में आकाश  ने मोटरसाइकिल को स्टैंड से उतारा और सेल्फ स्विच दो तीन बार प्रेस किया...पर मोटरसाइकिल चालू नहीं हुई... श्रुति हाथ बांधे खड़ी थी...कुछ गुस्सा होते हुए बोली...यार आकाश, तुम इसका सेल्फ़ ठीक क्यों नहीं करवाते...

आकाश कहता है - कोई ना, किक है न... अभी स्टार्ट हो जायेगी 

४-५ किक के बाद भी मोटरसाइकिल चालू नहीं हुई ...अब आकाश गुस्से में था... उसने कुछ सेकंड रूककर फिर से किक मारी और इस बार उसकी मोटरसाइकिल चालू हुई ... 

बैठ श्रुति चलते हैं - आकाश बोला 

श्रुति मुस्कुराते हुए मोटरसाइकिल की पिछली सीट पर बैठी, आकाश के कंधे पर हाथ रखा, आकाश ने हेलमेट पहना और एक हल्की मुस्कराहट के साथ दोनों वहां से निकले, श्रुति ने कैप टाइप हेलमेट लगा रखा था, ये हेलमेट आकाश ने ही उसे लाकर दिया था...आकाश कहता था मोटरसाइकिल पर बात करने में खुले हेलमेट में आसानी होती ... हालाँकि श्रुति को हेलमेट लगाने से ही परहेज़ था...

दोनों बात करते हुए मोटरसाइकिल पर चले जा रहे थे... अचानक श्रुति को समझ में आया कि वो लोग मॉल की तरफ नहीं जा रहे... 

आकाश हम मॉल जा रहे हैं  न ... बड़े प्यार से श्रुति ने पुछा 

आकाश ने थोड़े शरारती अंदाज़ में कहा ... यार वहां भी चलेंगे पर तेरे साथ अकेले में बात करने और मोटरसाइकिल पर राइड करने के मौके कितने से मिलते हैं ...

श्रुति ने कुछ कहा नहीं, वो नाराज़ भी नहीं थी, उसे भी बाइक राइड में मज़ा आता था...




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