मोटरसाइकिल डायरीज – २


कहानी नहीं बहाना भर है उस एहसास को कहने का जो विक्की ने जिया था ... उस दरख़्त के नीचे .. पढ़ लीजिये 

रूड़की की सर्दियाँ जैसे कहर ढा रही थी, विक्की को सांस में तकलीफ हुआ करती थी ज्यादा सर्दी में. उसने सोचा और निकल पड़ा अपनी बुलेट मोटरसाइकिल पर एक ल्म्बी राइड पर. मेरठ में माँ पापा से मिलकर अल सुबह निकलकर दिल्ली पहुंचना और वहां से फिर जयपुर होते हुए शाम ढले जोधपुर.

दिल्ली में विक्की का जिगरी रोहन, जो उसके साथ मासकोम में था, तैयार मिला धौलाकुआँ पर, उसके पास भी बुलेट थी, ओल्ड मॉडल. घडी नौ बजा रही थी... सीधे जोधपुर पहुँचने के लिए उन्हें जयपुर में सिर्फ लंच करने का टाइम मिलेगा. दोनों दोस्त अपना सामान इलास्टिक फ़ास्टनर्स से मोटरसाइकिलों पर सेट करके निकल पड़े. जयपुर पहुँचते उन्हें ढाई बज गए, कुछ ट्रैफिक और कुछ विक्की का चाय के लिए रुकना, कहता यार रोहन बुलेट में पेट्रोल फुल है, अपना पेट्रोल तो रुक के ही लेना पड़ेगा. रोहन भी एक सिगरेट मार लेता. यह सिगरेट मारना रोहन का ही जुमला था, विक्की को नहीं समझ आता, सिगरेट मरना क्या होता है... जयपुर में बमुश्किल आधा घंटे में दोनों ने लंच निबटाया और जोधपुर के लिए चल पड़े... 340 की.मी. और छः बजे सूरज ढल जाने के बाद अँधेरे में राइड करना. विक्की ने कहा अब न कोई चाय और न कोई सिगरेट, सीधे जोधपुर बोल रोहन. रोहन ने अपनी स्माइल के साथ हामी में सर हिलाया. विक्की कुछ फ़ास्ट राइड करता था, मिडवे बर (एक कस्बा, जहाँ पर आर.टी.डी.सी. का मिडवे है) पहुँच कर फ़ोन लगाया...
सुन रोहन कहाँ पहुंचा?
यार विक्की बर पहुँच रहा हूँ तू १० की.मी. पहले से ही गायब है
मिडवे बर आजाना थकान हो गयी यार, कुछ देर रूककर चलते हैं !
ओ.के. बडी १० मि, में पहुँचता हूँ !

अँधेरा घिर आया था, रोहन और विक्की ने डीसाइड किया की जोधपुर अब यहाँ से कुछ १३० की.मी. है, स्पीड कम रखनी है क्योंकि रोड कुछ ठीक नहीं है और जल्दबाजी ठीक नहीं. जोधपुर पहुँच कर दोनों ने होटल में मोटरसाइकिल पार्क की और कमरे में पहुँचते ही बेड पर निढाल हो गए. चार छः गालियाँ दी रोहन ने अपनी भड़ास निकलने के लिए उन कार वालों के लिए जिनको ड्राइविंग सेंस नहीं था, और निकल आये थे हाईवे पर... दोनों हँसे और खाना आर्डर किया. दोनों ने शावर लेने के बाद खाना खाया और ऐसे सोये की सुबह ८ बजे रोहन के डेड के फ़ोन से दोनों की आँख खुली...
डैडी वि आर अट जोधपुर, हाँ रात को ८.३० पहुंचे, एवरीथिंग इस इन कण्ट्रोल, डोंट वरी.. बस अभी ब्रंच लेके रामदेवरा और फिर सीधे खींचन (एक गाँव जहाँ सर्दियों में माइग्रेटरी बर्ड्स का जमावड़ा रहता है). बाय कॉल करता हूँ !!

विक्की ने पार्किंग से रोहन को फ़ोन लगाया
अबे तेरी बाइक पंक्चर है..
ओह ...शिट..विक्की यार किट भी नहीं है, भूल गया..
आजा तू नीचे मेरे पास है ..

९ बजे दोनों निकल पड़े... विक्की ने जो रूट फाइनल किया था वो असल में कुछ और था, जैसलमेर हाईवे उसको पिछली राइड में जमा नहीं था.. इस बार ओसियां (यहाँ माता का मंदिर है) होते हुए पहुँचने का प्लान था.

कुछ ११ बजे दोनों रुकते रुकते पहुंचे, रोहन फोटो लेता रहा बीच बीच में रूककर..

विक्की कुछ बरस पहले यहाँ आया था एक एन.जी.ओ में था तब. रोहन जैन मंदिर और माताजी के मंदिर की फ़ोटोज़ लेने के लिए अलग हो गया. विक्की पहुँच गया ओसियां बस स्टैंड...
रेगिस्तान के इस क़स्बे में वीरान बस स्टैंड के पीछे बड़े से खेत में खड़े खेजड़ी के पेड़ की तरफ कदम बढ़ाये चला, इंतज़ार कुछ और लम्बा हो गया... मालूम था वो नहीं आएगी, पर न जाने क्यों वो दिन याद हो आया जब इसी दरख़्त के नीचे वो मिले थे...
विक्की ने अपनी डायरी निकाली और लिखने लगा...


तू आई कुछ ऐसी शोख़ी लेके, कुछ यूँ जुल्फों को हाथ से एक काँधे से दूसरे पे डाला


वो मुस्कराहट, वो खुली हंसी, वो नरम होंठ, वो मोतियों सी चमकती मुस्कान
हाँ मुझे यकीन है यह सपना नहीं है
फिर भी बीत जाने के बाद भी क्यों लगता है जैसे सपना ही तो था...
तेरा वो आँखों को मूँद के मेरे छुहन को मुकम्मल कर देना, वो अपना हाथ मेरे दिल पे रखना 
तेरा यूँ मेरी आँखों में देखना, जैसे अभी कहेगी आह ....
तुझे नहीं है मालूम कि इन आँखों में बहुत कुछ है, ज़माने भर से ज्यादा
मेरे हाथ पर अपना हाथ रखना और ये मंसूबे करना कि यह हवा यूँही चलती रहे और एहसासों को सुलगाती रहे ...


उस दरख़्त को रहेगा याद जब तक उस शाख़ पर पत्ते हैं हरे

उस हरेपन के साथ ही यह कहानी भी रहेगी ज़िन्दा


.. यह लड़की कौन थी... बताऊंगा दोस्तों

... और यह भी कि दोनों दोस्तों की मोटरसाइकिल राइड में क्या हुआ 

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