धुन्ध में उभरता एक चेहरा

कल की सुबह कुछ अजीब थी, और सुबहों की तरह ही पर कुछ अलग. चेतन हो जाने से पहले का कुछ समय जब दिमाग अर्धचेतन अवस्था में होता है तो कुछ शक्लें, कुछ जगहें और कुछ चीज़ें नज़र आती हैं...शायद इसलिए कहा भी जाता रहा है कि सुबह देखे सपने सच होते हैं. बहराल आँख खुलने और उठकर बैठने से पहले की यह बात है. लगा में जाग चुका हूँ और कमरे के बाहर निकलते ही धुन्ध में खड़ा हूँ, उसी धुन्ध में एक चेहरा दिखता है, मानो सूर्य की जगह वह चेहरा ही उगा है. जाना पहचाना सा यह चेहरा, वह जब स्कूल में मुझे दिखती थी तब का सा लगा, मगर मानो मैं ही उसे पहचान नहीं पाया.. यत्न करता हूँ उसे पहचानने का.. फिर मानो रिमोट के बटन दबाने भर से उसका चेहरा बदल गया, यह तो वही चेहरा है जैसे कि उसे मैंने स्कूल रीयूनियन में कुछ महीने पहले देखा था. फिर क्यों उसका वही चेहरा पहले नज़र नहीं आया ... क्यों उसका वही क्यूट सा निश्चल सा चेहरा नज़र आया, जैसी अक्सर वह स्कूल में दिखा करती थी .... इतने में वह हंसकर बोलती है 'कैसे हो'. मैं अब भी विश्वास नहीं कर पा रहा हूँ कि यह वही है. मैं कुछ नहीं बोलता, वह बात जारी रखती है 'स्कूल में तुम मुझे सबसे अच्छे लगते थे, सबसे प्यारे.. तुम्हारी हैण्डराइटिंग बहुत अच्छी थी, सब लोग मेरी हैण्डराइटिंग की तारीफ़ किया करते थे, मगर मुझे तुम्हारी ज़्यादा अच्छी लगती थी.' उसने और भी बहुत कुछ कहा मगर धीरे धीरे उसका चेहरा धुन्ध में बिखर गया.. और वह धुन्ध अलाव जलने से पैदा हुए धुएँ की मानिंद बिखर गया. अब उसका चेहरा नहीं है. आवाज़ अब भी मौजूद है.. वही बातें जो अक्सर वह अपनी सहेलियों से किया करती थी और मेरे आस पास होने से उसकी बातें बंद हो जाया करती थी.. फिर वही आवाजें मेरे आस पास होने पर भी क्यों आ रही हैं.. आँखें खुल चुकी हैं, पास ही ड्रेसिंग टेबल के शीशे में अपना चेहरा देखता हूँ .. आँखें सुर्ख हैं जैसे रात भर कंप्यूटर पर सेल्स एनालिसिस प्लान तैयार किया हो... फिर अपनी उँगलियों को देखता हूँ. अब हैण्डराइटिंग सिर्फ़ कागज़ पर साईन या नोट लिखने भर की बची है, और इसकी सूरत भी बदल गयी है..

Comments

  1. बढ़िया मनोज जी, सपनों का शिल्प कम-ओ-बेश एक सा ही होता है. बावजूद इसके हम इसे एक बेकार की बात समझते हैं. अगर सपने अपूर्ण इच्छाएं है तो संभव है उनमें आने वाले वक्त के भी कुछ संकेत छुपे हों...

    ReplyDelete
    Replies
    1. चेतन में देखा और महसूस किया हुआ अवचेतन में रूप लेता है, देखें भविष्य में क्या और कितना सच होता है !!

      Delete
  2. रोचक।
    मेरे भी सपनों के विषय में कुछ अनुभवें हैं।
    तीन टाईप के सपने देखता हूँ।
    एक जिसमें जागने के बाद पूरा सपना कुछ समय के लिए याद रहता है और जिसका मैं वर्णन कर सकता हूँ।
    दूसरा जिसमें जागने के बाद मन साफ़ हो जाता है और कुछ याद नहीं रहता।
    तीसरा , जो बार बार आते हैं।

    hand writing के विषय में मेरा भी वही हाल है।
    एक जमाना था जब हम खूब लिखते थे और हमारी hand writing अच्छी मानी जाती थी।
    आजकल लिखने का मौका ही नहीं मिलता।
    सब कुछ टाइप हो जाता है।
    आजकल forms भी online भरे जाते हैं।
    मुझे लगता है कि कुछ सालों में हस्ताक्षर भी outdated हो जाएगा।
    उंगलीयों का scan, हस्ताक्षर का स्थान ले लेगा।
    देखते हैं क्या होता है
    शुभकमानाएं
    जी विश्वनाथ

    ReplyDelete
    Replies
    1. टेक्नोलॉजी की बढ़त ने बहुत सी चीज़ें पीछे छोड़ दी है.. कहीं मानवीय एहसास भी इसके साथ पीछे ना रह जायें !

      Delete
  3. अब तो हर लिखे शब्द के साथ यह धुंध छटेगा...

    ReplyDelete
  4. धुंध भी सदा नहीं रहने वाली; धुंध छटने के बाद - कुछ प्रयास करना चाहिए -

    ReplyDelete
  5. यादें छोड़ने के लिये और भी बहाने हैं हैण्डराइटिंग के सिवाय। व्यक्तित्व में बहुत कुछ होता है जो याद रहता है।

    बस कोई याद करने वाला होना चाहिये। आपके पास है - स्वप्न में ही सही, यह नियामत है।

    आप बढ़िया लिखते हैं।

    ReplyDelete
    Replies
    1. उसे हम और हमें वह याद है..

      Delete
  6. waah.....badhiya sapna tha ekdam aapka to.....

    ReplyDelete
  7. Despite being fictional, your writing has a sense of realism, which attracts the attention of the reader and he can't help but put himself in the place of the characters. Simplistic though, this is a very important trait for any writer because this very attribute makes any story a special one. I look forward to reading a long story from you in the near future. :)

    ReplyDelete
    Replies
    1. Thanks Rishi, I am surely on the way to complete a nice LONG story, will post it it in a week or so. :)

      Delete
  8. मनोज , कोलाज सा लगा एक शब्दचित्र की तरह ..ये भोर के सपने भी ना पता नहीं किस किस को खींच कर हमारे सामने ला खड़ा करते है और यकीन नहीं होता ये सपना था ....और हस्तलिपि ..एक समय में पूरी क्लास के सामने कॉपी दिखाती थी मैम ..आज तो लिखने का सोचकर ही घबरा जाती हूँ,,,,

    ReplyDelete
    Replies
    1. यकीन मानिये आप बहुत अच्छा लिखते हैं, मनोज जी

      Delete
  9. wow....school days.......they take us to another world

    ReplyDelete

Post a Comment

आपको यह ब्लॉग कैसा लगा, कहानियाँ और संस्मरण कैसे लगे.. अपने विचारों से मुझे अनुगृहित करें.

Popular Posts